अगर कहूँ कि एक
शाख़ का पत्ता हूँ
तो वसंत भाता नहीं
जाने कब पीला पड़कर
वेदना की खड़खड़ाहट के साथ
झड़ जाऊँ
पर ख़ुश हूँ कि नई कोंपल
कहीं फूटने को आतुर होगी
मेरे जाने के बाद
-संध्या यादव
शाख़ का पत्ता हूँ
तो वसंत भाता नहीं
जाने कब पीला पड़कर
वेदना की खड़खड़ाहट के साथ
झड़ जाऊँ
पर ख़ुश हूँ कि नई कोंपल
कहीं फूटने को आतुर होगी
मेरे जाने के बाद
-संध्या यादव
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