घड़ी को कलाई पर
बाँधकर
सिर्फ़ वक़्त का पाबँद
हुआ जा सकता है
बाँधा नहीं जा सकता
जैसे बीता कल घँटे
और मिनट की
सुईयों से नहीं सँभलता
आँखों पर कहीं भी
बेवक़्त छा जाता है
-संध्या यादव
बाँधकर
सिर्फ़ वक़्त का पाबँद
हुआ जा सकता है
बाँधा नहीं जा सकता
जैसे बीता कल घँटे
और मिनट की
सुईयों से नहीं सँभलता
आँखों पर कहीं भी
बेवक़्त छा जाता है
-संध्या यादव
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