गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

हम लाख कहते फिरें कि लड़कियों के प्रति लोगों की सोच बदल रही है पर सच तो यह है कि हमें अपनी सुविधानुसार बदला गया है।जैसे गृहस्थी का कोई ओल्ड फ़ैशन्ड सामान बदला जाता है या फ़िर वास्तुदोष होने पर घर का नक्शा बदल दिया जाता है। काहे को सुंदरता का पैमाना 36 24 36 (जो भी हो इंटरेस्टेड लोग सुविधानुसार पढ़ लें) है।टेनिस और बैडमिंटन में क्यों महिला खिलाड़ियों को ऊँची स्कर्ट पहनने जैसे नियम बनाये जाते हैं। क्या सभी दर्शक उनका खेल देखने ही जाते हैं? आज़ादी देने का दँभ भरने वाले पहले ये तो देखें कि हमें कितनी मात्रा और कितने ग्राम आज़ादी की खुली हवा दी गयी है।क्यों कंडीशन्स अप्लाई की तख़्ती हर वक़्त गले में लटकी रहती है। शीला मुन्नी बदनाम होने और अपने फोटो को सीने से चिपकवाने वालियाँ अपनी आधी से ज़्यादा देह दिखाने, शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आर्थिक क़सरत करवाने के बाद भी क्यों खानों और बाक़ी अभिनेताओं से कम मेहनताना पाती हैं। कभी अख़बारों में छपने वाले वैवाहिक विज्ञपनों पर ग़ौर कीजिए कैसे मनमाफ़िक बहुओं की डिमांड की जाती है. एक वेल सेटेल्ड लड़के के लिए
पढ़ी लिखी
पतली
सुंदर
लम्बी
गोरी
नौकरी पेशा
कुण्डली दोषमुक्त
गृह कार्य में दक्ष
सँस्कारी कन्या चाहिए। और अब भी कहते हैं कि मानसिकता बदल रही है।

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