कभी ध्यान से सुनो तो लगता है कि रात बस
सिसकियाँ लेती हो और तेज़ आवाज़ में रो नहीं पाती जैसे डरती हो कि कहीं
ज़िंदग़ी की नींद न खुल जाये। सुबकती, तकिये में मुँह दबाये लगातार रात आँसू
बहाती है
.
.
किसी फुटपाथ पर
किसी झोपड़ी में
दुनिया के तमाम
राहत कैंपों में
बंद कमरों में
और नीली बत्ती वाले
इलाक़ों में
रात सिसकियाँ लेती है
-संध्या
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किसी फुटपाथ पर
किसी झोपड़ी में
दुनिया के तमाम
राहत कैंपों में
बंद कमरों में
और नीली बत्ती वाले
इलाक़ों में
रात सिसकियाँ लेती है
-संध्या
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