जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में जब मलयालम लेखिका
आरके इंदिरा ने वात्स्यायन की पुस्तक कामसूत्र को चुनौती देते हुए उसे
स्त्री विरोधी करार दिया तो हंगामा बरपना स्वाभाविक था। उसपर से सोने पे
सुहागा यह कि उन्होंने ख़ुद महिलाओं के लिए जवाब में एक क़िताब लिखी है। इस
विषय पर शोध के दौरान उन्हें कुंठित, सनकी तो कहा ही गया साथ साथ विचित्र
किस्म के निवेदन भी किये गये। अब ज़रा आपका ध्यान अख़बारो में विषेश क़िस्म का
स्थान पाने वाले और कमज़ोरी दूर कर पत्नी
को ख़ुश रखने वाले विज्ञापनों की ओर इंगित कराना चाहती हूँ। अजंता एलोरा की
गुफ़ाओं से लेकर इन विज्ञपनों और पीपल के पेड़ नीचे वाली असली दुक़ानें सब
महिलाओं के शोषण और हिंसा को प्रेरित करती है। अरे आधी रात को जब आपका
दुधमुँहा बच्चा बिस्तर गीला कर दे तो उसके पोतड़े बदलकर देखियेगा बीवी तब
ख़ुश होगी, किसी रविवार उसके सोकर उठने से पहले एक कप चाय बनाकर बिस्तर पे
दीजिए बीवी तब भी ख़ुश होगी या फ़िर उससे घर के खर्च के बजाय सीता या द्रौपदी
के अलावा इंदिरा नूयी और सुनीता विलियम्स जैसी प्राणनाथ रखने वाली
पत्नियों के बारे में चर्चा करते समय बीवी की आँखों में डबडबाती चमक
देखियेगा बीवी तब भी ख़ुश होगी।
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