मँझली नहीं उतरती अब छत से
रात गये बापू भईया को खाना देने
जबसे पिछले जेठ की रात
भितरी कच्ची कोठरी की धन्नी से
हँसमुख बड़की लटकी मिली थी
-संध्या
रात गये बापू भईया को खाना देने
जबसे पिछले जेठ की रात
भितरी कच्ची कोठरी की धन्नी से
हँसमुख बड़की लटकी मिली थी
-संध्या
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