मैंने कई बार सपनों की गहराई में
चुपके से गोते लगाये हैं
हर बार हाथ आता है
तुम्हारी यादों का मोती
जिसे रख लेती हूँ
मन की पोटली में छिपाकर
सांस रोके खोजती हूँ
निपट अँधेरों में...
पर अफ़सोस कोई रास्ता
तुम तक नहीं जाता
कोई साँकल ढीली नहीं पड़ती
और न ही कोई कुँडी सरकती है
मौन साधे बस कुछ गलियाँ हैं
जिन पर चला जा सकता है
ताउम्र अकेले फ़ासले बनाकर
-संध्या यादव
चुपके से गोते लगाये हैं
हर बार हाथ आता है
तुम्हारी यादों का मोती
जिसे रख लेती हूँ
मन की पोटली में छिपाकर
सांस रोके खोजती हूँ
निपट अँधेरों में...
पर अफ़सोस कोई रास्ता
तुम तक नहीं जाता
कोई साँकल ढीली नहीं पड़ती
और न ही कोई कुँडी सरकती है
मौन साधे बस कुछ गलियाँ हैं
जिन पर चला जा सकता है
ताउम्र अकेले फ़ासले बनाकर
-संध्या यादव
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