skip to main
|
skip to sidebar
नुक्कड़वाली गली से...
मुख्य पृष्ठ
लॉगिन
गुरुवार, 24 जनवरी 2013
उफ़ान पर है लहू इस क़दर
चढ़ाकर देख लो अपनी कोई भी हाँडी
तुम्हारे कानों का ठंडा शीशा
न पिघला दे तो कहना
-संध्या यादव
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
हमारी शान
फ़ॉलोअर
मेरे बारे में
नुक्कड़वाली गली से...
मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें
अनुवादक (Translator)
विजेट आपके ब्लॉग पर
पिछली पोस्ट्स
▼
2013
(139)
►
अगस्त
(14)
►
जुलाई
(13)
►
मई
(11)
►
अप्रैल
(9)
►
फ़रवरी
(67)
▼
जनवरी
(25)
ईंटे महज़ पत्थर नहीँ होती कई बार भावनाओं की अधिकता...
ख्वाब देखते हुए मैंने तय किया था उड़ान भरकर जिंदा...
ए दिल मेरे!बेवजह ही सही तू ज़िद तो कर हम भी देखेंग...
ए दिल मेरे!बेवजह ही सही तू ज़िद तो कर हम भी देखेंग...
तूफ़ान थम चुका है ये सोचकर वे लौट आये थे किनारो...
तमाम उम्र से भला है या मौला नवाज़ दे जी मुझे थोड़ी...
बहुत बड़ी चीज़ मांग रही हूँ तुमसे वचन दो कि तुम हि...
जब चेहरे शहरों के सलोने हो गये क़द इंसानियत के बौ...
उफ़ान पर है लहू इस क़दर चढ़ाकर देख लो अपनी कोई भी ह...
मौत फिर किसी से हारी है और आईने मेँ हैरान ज़िंदगी ...
नपुंसक हो चुकी हैं अगर ये सरकारें तो लगा लें ध...
ज़बान वाले गूँगे हैं हम कपड़े पहनकर नँगे है हम लो...
चलो अब बहुत हुआ ये दूसरों को जगाने से बेहतर है ...
सुनहरे से गुलाबी हो जाता है हरसिंगार की सबसे ऊँच...
मैंने कई बार सपनों की गहराई में चुपके से गोते लग...
ज़रा हौले से हल्के हाथों से आहिस्ता आहिस्ता हटान...
हम क्यूँ कहें कि बिन तेरे मर जायेंगे जिंदा रहकर उ...
आज जब मां ने फिर परबतिया की बात छेड़ी तो साधना अस...
तुम
साहब अब क्या करुँ आपका
तुम्हारा भरम है कि वक़्त हर याद भुला देता है दीवा...
सर्दियों में नानी बीमार पड़ीं तो उनके घर सालों बाद...
नानी का गाँव अब भी वैसा है
रजाइयों और बलोअरों से गर्म कमरों में बैठे जब ह...
अब तक देखी थीचार हाथों और कई सिरों वाली औरत सिर्फ़...
►
2012
(50)
►
दिसंबर
(2)
►
नवंबर
(12)
►
अक्तूबर
(5)
►
सितंबर
(1)
►
जून
(7)
►
मई
(1)
►
अप्रैल
(17)
►
मार्च
(1)
►
फ़रवरी
(2)
►
जनवरी
(2)
►
2011
(63)
►
दिसंबर
(2)
►
नवंबर
(8)
►
अक्तूबर
(7)
►
सितंबर
(4)
►
अगस्त
(6)
►
जुलाई
(3)
►
जून
(3)
►
मई
(4)
►
अप्रैल
(3)
►
मार्च
(13)
►
फ़रवरी
(10)
लोकप्रिय पोस्ट्स
(शीर्षकहीन)
प्रेम समस्या सप्रेम समाधान .......................... प्रिय रोगियों इस लेख को लिखने का आशय यही है...
MAIN AUR MERA JEEVAN
Mere jeevan se kahi apko ritik roshan ki film lakshya ki yaad to nahin aa gayi.jis...
(शीर्षकहीन)
काश..........कोई स्लट-वॉक इधर भी होता स्लट वॉक यानि कि अपने आप में एक बेशर्मी मोर्चा (अगर हिंदी में...
बचपन के दिन भुला न देना
हम कितने भी बड़े क्यूँ न हों जायें, बचपन के दिन हमेशा हमारी यादों में जिंदा रहते हैं.वो दिन जब हम बेफिक्री से बेमतलब यहाँ वहां घुमत...
मजदूर
पहली बार मेरी कविता को किसी पत्रिका में स्थान प्राप्त हुआ है ………लखनऊ से प्रकाशित पत्रिका "ग्राम्य सन्देश" में मेरी कविता मज...
तुम्हें क्या लिखूं?
सागर सी गहरी प्रीत लिखूं ऊंचे पर्वत की ऊँगली थामे बहती नदियों का जीवन संगीत लिखूं पथ से भटका राही हूँ यदि जंगल तुम्हें बियाबान लिखूं? ...
Kitaben bahut si padhi hongi humne!
लखनऊ विश्वविद्यालय ०८ ०२ २०११ किताबें जीवन कि सच्ची दोस्त होती है इसके लिए किताबो को पढ़ते रहना पड़ता है. पुस्तक प्रेमियों को एक ही जगह पर ...
(शीर्षकहीन)
मिटटी था मैं तुमने संभाला हथेली की थपकियाँ देकर गढ़ दिया कच्चा घड़ा गढ़ा ..........तो अच्छा किया पर अपनी आंच की भट्टी में जो पकाया ...
हर बार....
मेरे और तुम्हारे बीच सारी दूरियां मिट चुकी हैं बस बाकी हैं मीलों के फासले रेत के तपते रेगिस्तान झूठे रिश्तों के कैक्टस और शहर तथाकथित...
मेरी कुछ हायकू रचनायें
बंद कर दी डिबिया रंगों की? जान थी उसमें ------------- पकड़ लाये थे, जो तितली तुम मैंने उड़ा दी ----------------- आसमान ले जाओ अपना लौटा दो मे...
आवागमन
Feedjit Live Blog Stats
© संध्या यादव
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें