ज़रा हौले से
हल्के हाथों से
आहिस्ता आहिस्ता हटाना
सपनों का ये ट्रेसिंग पेपर
जो अब मेरे भी हैं
जिन्हें सजाते हुए
मैंनें सदियाँ जी हैं
जिनमें हमारी साँसे हैं
धड़कनों का अनहद शोर है
जहाँ नरकुल की तरह
वक़्त खड़ा है
सिवार की तरह
ज़िंदगी उतराती है
जहाँ पीठ दिखाकर
अँधियारा पाख बैठता है
जहां तुम फैले हो
कच्ची धूप की तरह
और मुझमें समा जाते हो
कुनकुनाहट के साथ
-संध्या यादव
हल्के हाथों से
आहिस्ता आहिस्ता हटाना
सपनों का ये ट्रेसिंग पेपर
जो अब मेरे भी हैं
जिन्हें सजाते हुए
मैंनें सदियाँ जी हैं
जिनमें हमारी साँसे हैं
धड़कनों का अनहद शोर है
जहाँ नरकुल की तरह
वक़्त खड़ा है
सिवार की तरह
ज़िंदगी उतराती है
जहाँ पीठ दिखाकर
अँधियारा पाख बैठता है
जहां तुम फैले हो
कच्ची धूप की तरह
और मुझमें समा जाते हो
कुनकुनाहट के साथ
-संध्या यादव
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