छंटाक भर की छोकरी
बड़ा ग़ुरूर है उसे
जाने किस बात पर
ठोकर मारती
उस हर चीज़ को
जो लिपटी है
सहानुभूतियों की चाशनी में
अव्वल सनकी
महीना भर होने को आया
आईना नहीं देखा
उसकी जगह कमरें में
एक तस्वीर सजा रखी है
-संध्या
बड़ा ग़ुरूर है उसे
जाने किस बात पर
ठोकर मारती
उस हर चीज़ को
जो लिपटी है
सहानुभूतियों की चाशनी में
अव्वल सनकी
महीना भर होने को आया
आईना नहीं देखा
उसकी जगह कमरें में
एक तस्वीर सजा रखी है
-संध्या
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