(......इस कविता का मैंने कोई नाम नहीं रखा है बस भिन्न भीं परिस्थितियों वाले घरों के संवाद को कविता के रूप में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयास भर है....)
अच्छा किया जो नहीं आए तुम
मैं यहाँ सब संभाल लूंगी
मां बीमार है
गुड़िया के कॉन्वेंट स्कूल में
एक्स्ट्रा को कैरिकुलर एक्टिविटीज़ की
फीस अलग से लगेगी इस बार
थाली रोज़ अगती हूँ तुम्हारी
खाने की मेज पर
मुझे पसंद नहीं फिर जाने क्यूँ
बिना नागा किये चखती हूँ
तुम्हारा पसंदीदा खीरे का रायता
मैंने नौकरी छोड़ दी है
बॉस तलाशने लगा था आजकल
दूसरी संभावनाएं
पैसे थोड़े ज्यादा डाल देना
अकाउंट में
बाक़ी मैं ठीक हूँ
ये मुआ कौव्वा रोज़ आकर
बैठ जाता है मुंडेर पर
सवेरे ही अख़बार वाला
फेंक गया है ये खबर दरवाज़े पर
इस साल देर से दस्तक देगा
मॉनसून
-संध्या
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