बड़ी बड़ी नेम्प्लेटें
चस्पां हैं बंगलों में
जिन्हें तुम पढ़ नहीं पाते
और बड़े साहब तक ही
सीमित रह जाते हो
कभी तुम्हें घुसने नहीं
दिया जाता
पवित्र मंदिरों में?
तो गले में लटकाकर
लॉकेट श्रद्धा का
उतने में ही खुश हो जाते हो
ये साठ फिटा सड़कें
और हाईवे तरक्की के
नहीं है तुम्हारे लिए
फिर भी बनाते हो
जब किसी दिन
गुज़रता है है काफ़िला
अम्बेसडर गाड़ियों में बैठे
किसी सफेदपोश का
तो इन्हीं पर चलने से
रोक दिए जाते हो
हजारों करोड़ रूपये
खर्च होते हैं
तुम्हारे ही नाम की
योजनाओं में
फिर क्यूँ दिवाली छत्तीस
रूपये में मानते हो
तुम्हारे लिए नहीं
पांच सितारा अस्पताल
इलाज के लिए
तभी तो अधमरे ही
सड़कों पर फेंक दिए
जाते हो
बेघर कर दिए जाते हो
बिना बताये आधी रात को
तुम्हारे सपनों पर
चला दिया जाता है
बुलडोज़र
फिर क्यूँ बोलो?
जन गन मन
अधिनायक जय हे
राष्ट्रगान में गाये जाते हो. शायद तुम ही आम आदमी
कहलाये जाते हो -संध्या
एकदम सही बात कही है आपने।
जवाब देंहटाएंआम आदमी का एक बेहतरीन शब्दचित्र प्रस्तुत किया है।
दीपावली आपको आपके परिवार व मित्रों को मंगलमय हो।
सादर
कल 28/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
आम आदमी तो हाशिए से भी बाहर है. उसके लिए निर्मित योजनाएँ भारत में भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा ज़रिया हैं. तीखी बात कहती बढ़िया रचना.
जवाब देंहटाएंकटु सत्य!
जवाब देंहटाएंसच को कहती अच्छी रचना पढवाने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंअक्षरश: सत्य कहा है आपने ...बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंekdam bebak.....bahot achcha.
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