आज दरवाज़े पर दस्तक देकर
एक और ख़त वापिस आया
शाम की केंचुल उतार
आसमान रात हो गया
जब नदी ब्रह्मकमल की तलाश में
पहाड़- पहाड़ चढ़ी
जब आसमान चमकीला और
चाँद काला था
जब मैनें तुम्हारी आँखों का
नमक चखा
उस दिन सच पूछो ........
मैंने गूलर के फूल चखे
------------------------------ ---------संध्या
एक और ख़त वापिस आया
शाम की केंचुल उतार
आसमान रात हो गया
जब नदी ब्रह्मकमल की तलाश में
पहाड़- पहाड़ चढ़ी
जब आसमान चमकीला और
चाँद काला था
जब मैनें तुम्हारी आँखों का
नमक चखा
उस दिन सच पूछो ........
मैंने गूलर के फूल चखे
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