जो दी तोर दाक शोने केयू न अशे तोबे एकला चलो रे....यानि तेरी आवाज़ पे कोई न आये तो फिर अकेला चल रेज्। रविन्द्रनाथ टैगोर जी को ये पंक्तियाँ लिखे एक सदी से भी ज्यादा समय हो चुका है लेकिन इनका असर आप लखनऊ के कुकरैल बंधे के पास बसे अकबरपुर में साफ़ देख सकते हैं। यहाँ अकेले चलने का बीड़ा उठाया है अनीता तिवारी और निरुपम मुखर्जी ने और इनके साथ चल रहे हैं डेढ़ सौ से भी ज्यादा नन्हे कदम जो तमाम दुश्वारियों के बावजूद किताबें थामे हैं। अनीता और निरुपम पिछले बाईस सालों से यहाँ के गरीब बच्चों को बिना रूपये लिए पढ़ा रहे हैं। लखनऊ यूनिवर्सिटी में एमए की छात्रा रहीं और एनजीओ नेटवर्क सोसाईटी में नौकरी कर चुकीं अनीता एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में जब अकबरपुर आई तो उन्हें अंदाज़ा तक नहीं था कि यही बस्ती एक दिन उनके लिए परिवार बन जाएगी। जितनी उनकी होली है उतनी ही ईद । तीन लड़कियों से शुरू हुई उनकी अनोखी क्लास में आज डेढ़ सौ से ज्यादा बच्चे पढ़ रहे हैं । इनकी पढाई कुछ लड़कियों की तो शादी भी हो चुकी है। अनीता बताती हैं कि लड़कियों की पढाई के लिए उनके माता-पिता को राजी करना आसान नहीं था। लेकिन हमने हार नहीं मानी। हमारी ईमानदारी और लगन देखकर लोगों ने यहाँ स्कूल चलाने की अनुमति दे दी। ज़्यादातर हमारा प्रयास यही रहता है कि ये बच्चियां खुद अपने माता पिता को राजी करें। यहाँ के अलावा अनीता और निरूपम एल्डिको ग्रीन पार्क और जीपीओ के पास भी पढ़ाते हैं। निरुपम बताते हैं कि झुग्गियों और हजरतगंज में गाडिय़ों के शीशे साफ़ करने वाले बच्चे हमारे लिए बड़ी चुनौती थे क्यूंकि इनमें से कई ऐसे थे जो आयोडेक्स ब्रेड में लगाकर खाते थे, कोई फेविकोल के दस ट्यूब रोज़ खाता था,तो कोई पेट्रोल सूंघ कर नशा करता। इनमें से कई मोबाईल चोरी का काम भी करते थे। ऐसे बच्चों को हम सही दिशा देकर ऐसे रोजगार में लगानें की कोशिश करते है जिससे वे अपनी आजीविका चलाने के साथ साथ पढ़ाई भी कर सकें। हमारे पढ़ाये ऐसे कई बच्चे हैं जो आज चाय, पान- मसाला और जूस की दुकान चला रहे हैं और कुछ लखनऊ केअच्छे मोटर मैकेनिकों में से हैं। जिस दुकान पर इन्होंने काम सीखा आज उसके मालिक हैं और यहाँ से पढक़र गए बच्चों को भी काम सिखा रहे हैं। ये वही बच्चे हैं जो कभी जेबकतरे हुआ करते थे। अनीता बताती हैं कि हम इन बच्चों को कोई सर्टिफिकेट नहीं दे पाते इसलिए एक से कक्षा पांच तक के बच्चों का प्राईमरी स्कूल में पढ़ाई करते हैं और बाद की पढ़ाई लडक़े राजकीय इंटर कालेज और लड़कियां करामत इंटर कालेज में पूरी करती हंै। कुछ लड़कियों ने इंटर पास किया है। अनीता तिवारी बाराबंकी के कोटवाधाम की और निरुपम मुखर्जी बंगाल के चौबीस परगना के रहने वाले हैं। निरुपम जी सरकारी कर्मचारी भी हैं। भविष्य में एनजीओ बनाने के सवाल पर कहते हैं कि हम घूस नहीं दे सकते और चोरी नहीं कर सकते और जो ये नहीं करता वो एनजीओ कभी नहीं चला पायेगा। हमने लोगों से कभी कोई मदद नहीं मांगी पर कुछ ऐसे लोग हैं जो बिना नाम बताये हमारी मदद करते हैं। लोग हम पर इतना विश्वास इसलिए करते हैं क्यूंकि हमने इनसे कभी झूठ नहीं बोला, इन्हें अपने जैसा बनाने के बजाय खुद इनके जैसे होकर इन्हें पढऩे की कोशिश की। अविवाहित अनीता कहती हैं कि भगवान से यही प्रार्थना है कि जब तक जि़न्दगी है इन बच्चों को पढ़ाती रहूँ।
अनीता और निरुपम हमारे लिए एक मिसाल हैं जिन्होंने मीडिया की चकाचौंध से दूर एक स्वार्थरहित दुनिया बनाई है। इन्होंने साबित कर दिखाया है कि बदलाव कभी भीड़ इक_ी करने से नहीं आता । धारा के विपरीत बहकर ख़ामोशी से किये गए काम इतिहास रचते हैं।
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