बाघ जी आप के शुभचरण क्या पड़े रहमानखेड़ा की धरती पावन हो गयी. पूरे 111 दिन का वास रहा इससे साबित होता है कि आप किसी ख़ासमखास उद्द्येश्य के साथ अवतरित हुए थे। बिना गड्ढे की सडक़ जैसे झलक दिखाकर गायब हो जाते थे। जब भी लगता की आपके होने का ये वहम भर है तो पोलियो के मामलों की तरह कभी यहाँ तो कभी वहां पाए जाते। वो कहावत भी तेल लेने चली गयी कि इलाका कुत्तों का होता है।। आपने घूम घूमकर अपना इलाका बता दिया। वो तो भला हुआ कि दिल्ली न गए वरना वो भी आपकी हो जाती। आप अवतरित न हुए होते तो पता भी न चलता कि बाघ बचे हैं। बाघ जी भला हो आपका। कुछ जनें बता रहे थे हमें कि आपके कारण उनकी जनरल नॉलेज बढ़ गयी। किताबों में पढ़ा था कि बाघ राष्ट्रीय पशु है आपकी कृपा से अब देख भी लिया। आपकी जि़म्मेदारी का भी जवाब नहीं बाघ जी,चुनाव से पहले आप अवतरित हुए,बाकायदा चुनाव करवाया और सरकार को कार्यभार दिलवा के गए हैं। आप तो नेता टाईप के शहंशाह निकले। अपनी आराम तलबी पर करोड़ों का खर्च करवाया। बाघावतार से ही वन विभाग कर्मचारियों का टैलेंट पता चला। बड़े दिनों से आपको शीशे में उतारने की कोशिश कर रहे थे पर चुल्लू भर पानी में उनके मुंह दिखाकर आपने औकातदर्शन करवाया कि बाघ पकडऩे चले हो फर्जी की मुठभेड़ करने नहीं। इसी बहाने हमारा हद निकम्मापन भी उसी चुल्लूभर पानी में उतराने लगा। टाईगर सफ़ारी के सपने उसी तरह से परवान चढ़े जैसे राहुल गाँधी के दम पर देश से गरीबी हटानी हो। वो तो भला हो कि आपने बैरक में लौट जाने का फैसला ले लिया वरना सेना बुलाने के आसार नजऱ आने लगे थे। हर तरह के आपरेशन में तो उसकी जरूरत पड़ती है। कभी प्रिंस आपरेशन तो कभी कोई और आपरेशन। कुछ दिनों में तो राशन की लाईन लगाने के लिए भी सेना न बुलानी पड़े। कईयों को आपने नक़ाब पहना दिया। जानवरों के नाम पर पेट भरने वाली पेटा दर्शन करने तक नहीं आई। पूनम पाँडे की तरह कोई चाल न चली सुखिऱ्यों में आने की ख़ातिर बस अपनी नैचुरल चाल चलते रहे। वनाधिकारी आपकी चरण रज माथे लगाते रहे और ताजे बासी के फेर में पड़े रहे। एक से एक पोज दिए कैमरे को, पर पिंजरे वाला दुर्लभ पोज 111 दिन बाद ही नसीब हुआ। रूपकली और चम्पाकली भी आयीं। पर बड़ा संयम बरता आपने भी दोनों के झांसे में नहीं आये। आपके बहाने नेताओं को भी कुछ एडवेंचरस करने का मौका मिल गया। जिनकी नेता बनते ही जान पर बन आती है, वो भी जनता की समस्या सुनने के नाम पर पिकनिक मना आये। अब जब भी बाघ आये तो घबराना मत क्योंकि किसी ख़ासमखास उद्दयेश्य के लिए अवतरित होगा। बाघ जी भला हो आपका जो हमारे ज्ञानचक्षु खोल दिए।सोमवार, 30 अप्रैल 2012
जय बाघवातार जी
बाघ जी आप के शुभचरण क्या पड़े रहमानखेड़ा की धरती पावन हो गयी. पूरे 111 दिन का वास रहा इससे साबित होता है कि आप किसी ख़ासमखास उद्द्येश्य के साथ अवतरित हुए थे। बिना गड्ढे की सडक़ जैसे झलक दिखाकर गायब हो जाते थे। जब भी लगता की आपके होने का ये वहम भर है तो पोलियो के मामलों की तरह कभी यहाँ तो कभी वहां पाए जाते। वो कहावत भी तेल लेने चली गयी कि इलाका कुत्तों का होता है।। आपने घूम घूमकर अपना इलाका बता दिया। वो तो भला हुआ कि दिल्ली न गए वरना वो भी आपकी हो जाती। आप अवतरित न हुए होते तो पता भी न चलता कि बाघ बचे हैं। बाघ जी भला हो आपका। कुछ जनें बता रहे थे हमें कि आपके कारण उनकी जनरल नॉलेज बढ़ गयी। किताबों में पढ़ा था कि बाघ राष्ट्रीय पशु है आपकी कृपा से अब देख भी लिया। आपकी जि़म्मेदारी का भी जवाब नहीं बाघ जी,चुनाव से पहले आप अवतरित हुए,बाकायदा चुनाव करवाया और सरकार को कार्यभार दिलवा के गए हैं। आप तो नेता टाईप के शहंशाह निकले। अपनी आराम तलबी पर करोड़ों का खर्च करवाया। बाघावतार से ही वन विभाग कर्मचारियों का टैलेंट पता चला। बड़े दिनों से आपको शीशे में उतारने की कोशिश कर रहे थे पर चुल्लू भर पानी में उनके मुंह दिखाकर आपने औकातदर्शन करवाया कि बाघ पकडऩे चले हो फर्जी की मुठभेड़ करने नहीं। इसी बहाने हमारा हद निकम्मापन भी उसी चुल्लूभर पानी में उतराने लगा। टाईगर सफ़ारी के सपने उसी तरह से परवान चढ़े जैसे राहुल गाँधी के दम पर देश से गरीबी हटानी हो। वो तो भला हो कि आपने बैरक में लौट जाने का फैसला ले लिया वरना सेना बुलाने के आसार नजऱ आने लगे थे। हर तरह के आपरेशन में तो उसकी जरूरत पड़ती है। कभी प्रिंस आपरेशन तो कभी कोई और आपरेशन। कुछ दिनों में तो राशन की लाईन लगाने के लिए भी सेना न बुलानी पड़े। कईयों को आपने नक़ाब पहना दिया। जानवरों के नाम पर पेट भरने वाली पेटा दर्शन करने तक नहीं आई। पूनम पाँडे की तरह कोई चाल न चली सुखिऱ्यों में आने की ख़ातिर बस अपनी नैचुरल चाल चलते रहे। वनाधिकारी आपकी चरण रज माथे लगाते रहे और ताजे बासी के फेर में पड़े रहे। एक से एक पोज दिए कैमरे को, पर पिंजरे वाला दुर्लभ पोज 111 दिन बाद ही नसीब हुआ। रूपकली और चम्पाकली भी आयीं। पर बड़ा संयम बरता आपने भी दोनों के झांसे में नहीं आये। आपके बहाने नेताओं को भी कुछ एडवेंचरस करने का मौका मिल गया। जिनकी नेता बनते ही जान पर बन आती है, वो भी जनता की समस्या सुनने के नाम पर पिकनिक मना आये। अब जब भी बाघ आये तो घबराना मत क्योंकि किसी ख़ासमखास उद्दयेश्य के लिए अवतरित होगा। बाघ जी भला हो आपका जो हमारे ज्ञानचक्षु खोल दिए।बुधवार, 25 अप्रैल 2012
प्लीज़ बनवा दीजिये न
मंगलवार, 24 अप्रैल 2012
आधी आबादी का सच
लखनऊ। 17 अप्रैल को मोहनलालगंज के अतरौली गाँव में घर के सामने खड़ंजे पर पगली (विक्षिप्त महिला) ने फूल जैसी बच्ची को जन्म दिया। करीब दस साल पहले दिमागी संतुलन खऱाब हुआ तो उसने अपनी ससुराल छोड़ दी। विक्षिप्त अवस्था में आने के बाद ........ (यहाँ पर मैंने समाचार पत्रों में प्रयोग होने वाले शब्द दरिंदा, वहशी आदि का प्रयोग जानबूझ कर नहीं किया क्योंकि ये सब भी हमारे समाज का ही हिस्सा हैं और समाज को ये कहना शायद कई लोग पचा न पाएं) ने उसके साथ दुराचार किया। वह इससे पहले भी दो बेटों को जन्म दे चुकी है। एक बेटा अहिमामऊ व दूसरा नगराम में एक रिश्तेदार के पास है। गदियाना गाँव में ब्याही इस पीडि़ता के पति से तीन बच्चे भी हैं पर अफ़सोस सबने उसे ये दिन देखने के लिए छोड़ दिया।
19अप्रैल को सुलतानपुर में एक पिता ने अपनी सात माह की दुधमुंही बच्ची को पटक कर मार डाला।
हाल ही में इलाहाबाद के ममफोर्डगंज बाल निराश्रित गृह में बच्चियों के साथ वहीं के कर्मचारियों ने दुराचार किया।
इसी तरह लखनऊ में ही एक पिता ने अपनी पुत्री की गला दबाकर हत्या कर दी क्योंकि लडक़ी गूंगी थी और उसके साथ दुराचार करने वालों का नाम बता पाने में असमर्थ थी।
20अप्रैल को ग्वालियर में चार बहनों ने अपने पिता के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज करायी है कि उसके पिता उन्हें बार-बार बेचने की धमकी देते हैं।
20अप्रैल को ही गुडग़ाँव में एक व्यक्ति ने अपनी दो बेटियों सहित पत्नी का क़त्ल कर दिया फिर खुद को भी फंासी लगा ली। कारण नौकरीशुदा बीवी के चरित्र पर शक।
18अप्रैल को बाराबंकी में एक पिता ने पुत्र के साथ मिलकर अपनी बेटी को मौत के घाट उतार दिया।
यही नहीं गुजरात में एक महिला ने बेटे की चाहत में अपनी ही बेटी को अपनाने से इंकार कर दिया।
20अप्रैल को पुरानी दिल्ली के लाहौरी गेट के रहने वाले जावेद तारिक ने अपनी बीवी इफ्तहयात को ज़हर दे दिया। उसका कुसूर बस इतना था कि उसने बेटी को जन्म दिया था। ये वही बड़े दिलवालों की दिल्ली है जहाँ की मुख्यमंत्री, देश को चलाने वाली सत्ताधारी पार्टी की अध्यक्ष, राष्टï्रपति और विपक्ष की कद्दावर नेता भी एक महिला हैं।
ये घटनाएं महज़ बानगी भर हैं। अधिकतर हमारी संस्कृति के पुरोधा ये मानते हैं पश्चिमी सभ्यता औरतों को सम्मान नहीं देती। ये घटनाएं हमारे उस सभ्य समाज की ‘जहाँ यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता’ का गुणगान गाया जाता है। ये श्लोक मनुस्मृति से लिया गया है यानि किजहाँ नारियों की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं। मनु स्मृति का ये श्लोक नारियों की पूजा की बात करता है तो हाँ बिल्कुल! हमारी संस्कृतिस्त्रियों की पूजा करती है। ये वही संस्कृति है जहाँ पैंतीस साल के आदमी की आठ साल की लडक़ी के साथ करवाना जायज़ ठहराती है, हाँ ये वही संस्कृति है जहाँ ये कहा जाता है कि रजस्वला होने पर यदि लडक़ी मां-बाप के घर रहे तो माता-पिता नर्क के भागीदार होते है और इसमें भी कोई शक नहीं कि ये वही संस्कृति है जिसमें वेदों को पढऩे का अधिकार स्त्रियों को नहीं दिया गया था सिर्फ पुराण सुनने का अधिकार दिया गया था। आधुनिक काल तक जिस संस्कृति की सोच ये थी यदि स्त्रियों ने पाश्चात्य शिक्षा प्राप्त कर ली तो वे विधवा हो जाएँगी और पति को अपने काबू में रखेंगी। जब भ्रूण हत्या प्रचलन में न थी यदि मान लिया जाये कि तब सौ में से पैंतालिस प्रतिशत महिलाएं थीं उनमें से बस यही तीन नाम लोपामुद्रा, घोषा,मैत्रेयी और अपाला मुख्य रूप से आते हैं जबकि ऋषि मुनियों के खाते में बहुतेरे वेद पुराण आते हैं। जहाँ की आधी आबादी में से केवल तीन या चार नाम निकलते हैं। तो कल्पना कीजिये उस माली के लगाये सौ पौधों में से यदि सिर्फ तीन में फूल आते हैं तो माली बहुत अच्छा है या वो तीन जिन्होंने अपने संघर्ष से सब हासिल किया। श्रेय किसे दिया जाए? जहाँ अहिंसा परमो धर्म है और इंसानियत व दान पुण्य के किस्से स्वर्ग नरक तय करते हैं उस देश में महिलाओं की हालत का अंदाजा आप सहज लगा सकते हैं। मैं किसी नारीवादी की तरह सारा दोष पुरुषों पर नहीं मढऩा चाहती बल्कि दोष तो हमारी समाज व्यवस्था और ढोंगी संस्कृति का है। वह संस्कृति जिसमें सूर्यदेवता कुंती को दान स्वरूप कर्ण जैसा तेजस्वी योद्धा देते हैं, गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या के रूप पर मोहित होकर इन्द्र छद्मवेश का मायाजाल रचते है, फिर अहिल्या गौतम ऋषि के श्राप से पत्थर बन जाती है और उद्धार के लिए मर्यादापुरुषोत्तम राम आते हैं, जिनकी खुद की पत्नी सीता को अग्नि परीक्षा के बावजूद महल छोडऩा पड़ता है। जहाँ स्त्री की कोख की उर्वरता को तो पूजा जाता है पर उसकी कोख को उस कटोरे से कम नहीं आँका जाता जिसके भरने और खाली होने में ज्यादा फर्क नहीं किया जाता। इस भारत भूमि पर उगे हर धर्म का सार इंसानियत है। यहाँ इंसानियत के नाते सडक़ पर बच्चा देती गाय के लिए ट्रैफिक जाम हो सकता है पर किसी पगली औरत पर किसी का ध्यान नहीं जाता जो साल-दर -साल तीन बच्चों की माँ सडक़ पर बनी हो। शायद यहाँ औरत को सिर्फ मादा समझा जाता है। हमारे समाज में सभ्यता के पैमाने कपड़ों से तय किये जाते हैं। मैं ये नहीं कहती कि औरतें सिर्फ छोटे कपड़े पहनेें या फिर शराब या सिगरेट पीना शुरू कर दें लेकिन यदि बराबरी की बात छिड़े तो फिर सब पर लागू हो। यदि जींस या छोटे कपड़े पहनने से अश्लीलता को बढ़ावा मिलता है तो फिर उन पुरुषों को क्या कहा जायेगा जो कभी भी कहीं भी खड़े होकर निपट लेते हैं। औरतों के ऊपर मान-मर्यादा की लिजलिजी केंचुली किस कदर चढ़ा दी गयी हैं इसका नमूना हमारे समाचार-पत्रों के उस शीर्षक से पता चलता है जिसमें चार बच्चों की माँ प्रेमी संग फरार हो जाती है। कहने को तो अमृता प्रीतम जैसी स्त्रियों को भी ये समाज पचा नहीं पता जिन्होंने साहिर और इमरोज़ के साथ अपने संबंधों को समाज के सामने स्वीकार किया। एक आम शादीशुदा महिला प्रेमी संग फरार ही हो सकती है। आम तौर पर ये खबरें कभी संज्ञान में नहीं आतीं कि चार बच्चों का बाप फरार। यहंा एक मां पुत्र की लालसा में अपनी ही बेटी को अपनाने से इनकार कर दे और बच्ची सात दिन तक भूखी रहती है। यदि जानवरों के बच्चों के साथ भी थोड़ा समय बिताया जाए तो लगाव हो जाता है तो फिर बच्चियों को मार देने वाले किस श्रेणी में आते हैं ये आप सब तय करिए? सिर्फ दो धड़ों में बंटा हमारा समाज तीसरे रास्ते के लिए आसानी से तैयार नहीं दिखता। होना तो चाहिए कि ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाये जिन्होंने कभी दहेज़ लिया हो या अपनी बहू की हत्या की हो या गर्भ में पलने वाली अजन्मी बच्ची को मारा हो। क्योंकि जब तक सामाजिक बहिष्कार नहीं होता तब तक ऐसे लोगों को सबक नहीं सिखाया जा सकता। अगर ऐसी घटनाओं को रोकना है तो हमें संस्कारों की पाठशाला अपने घर से शुरू करनी होगी। सिर्फ बेटी को बचाव के तरीके सिखाने से काम नहीं चलेगा। बेटों को भी वो संस्कार देने होंगे। नारीवादी सिर्फ महिलाएं ही क्यूँ होती हैं नारीवादी पुरुष बनने से अगर कोई बदलाव नजऱ आता है तो इसमें हजऱ् क्या है?
हर लम्हा है ज़िन्दगी
बंद रेलवे क्रॉसिंग अक्सर मेरे धैर्य का परीक्षण करती है। अगर गौर करें तो मिनी इण्डिया के दर्शन रेलवे फाटक के दोनों ओर खड़ी भीड़ में हो सकते हैं और आँखों के सामने से गुजऱती ट्रेन यक़ीनन आपको इनके्रडिबल इण्डिया का भान कराएगी जिसके हर डिब्बे में अलग तरह के लोगों का बसाव मिलेगा, ट्रेन की खिड़कियों से लटके दूध के कैन और खिड़कियों से लटके सफऱ करते लोग। इतना रोमांच तो एवरेस्ट की चढ़ाई में भी नहीं मिलेगा। बख्शी का तालाब से टैक्सी लेते समय एक नजऱ तालाब पर चली ही जाती है। गाँव के बूढ़े पीपल और घर के बुजुर्गों की तरह सबको पहचान देने वाला आज यह तालाब चुपचाप अकेले सिसकियाँ लेता है। टैक्सियों में बजने वाले गाने कई बार मुझे अजनबी भाषा के लगते हैं लेकिन संगीत की कोई अलग भाषा नहीं होती। सहित्य और सिनेमा किसी भी समाज और उसके देशकाल का आईना होते है।
साहित्य और सिनेमा ऐसी दो विधाएं हैं जिनके आधार पर किसी भी देश और समाज के विषय में जाना जा सकता है। दोनों ही उसके बौद्धिक विकास और रचनात्मकता का पैमाना होते है। जहाँ एक ओर फि़ल्में ओर साहित्य उस समाज को समझने का बेहतर उपाय हैं, वहीं दूसरी ओर किसी भी परिस्थति या मनोदशा को दर्शाते है। रंग दे बसंती फिल्म के ‘थोड़ी सी धूल..’ गाने ने जेनरेशन नेक्स्ट के इस अनोखे देशप्रेम का सबको दीवाना बना दिया था। पीपली लाईव की ‘महंगाई डायन’ ने उसे संसद का सबसे लोकप्रिय विषय चर्चा के लिए बना दिया। महंगाई डायन हमेशा से ही समाज में थी लेकिन इतनंी लोकप्रिय पहले कभी नहीं हुयी थी। इन सब उदाहरणों के पीछे का आशय यह है कि हर फिल्म या गाना अपने समय के समाज, परिस्थितिकाल, और मनोदशा का पोषक होता है। फिर चाहे वो हिंदी सिनेमा हो या भोजपुरी या फिर तमिल।
सबके पीछे एक सन्देश या फिर यूँ कह लें कि पूरी कि पूरी विचारधारा छिपी हुयी होती है। इसका सबसे सटीक उदाहरण है टैक्सियों में बजने वाले गाने जो कॉलेज गोइंग्स में टेम्पो टाईप के नाम से मशहूर है। इसी तरह का एक टेम्पो टाईप है ‘अरे रे मेरी जान सवारी, तेरे कुर्बान सवारी..’ और आगे का पूरा गाना टैक्सी चालकों कि मनोदशा और उनसे कि जाने वाली पुलिसिया वसूली को बड़ी ही साफगोई और चालाकी से बयां कर जाता है। ये बताता है कि कैसे पुलिसिया वसूली की खीज वो सवारियों को भूसे के मानिंद ठूंस के निकालते है। भले ही इण्डिया में दोपहिया और चारपहिया वाहनों का बाज़ार दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा हो लेकिन अब भी ये टैक्सियाँ ही कई शहरों में एक जगह से दूसरी जगह तक पहुँचने का एकमात्र जरिया लाखों लोगों के लिए है। यानि कि अब हमें ये मान लेना चाहिए कि ये टेम्पो टाईप सिर्फ हास परिहास का विषय नहीं है बल्कि इनका भी अपना एक टाईप है. जो बहुत हौले से अपनी बात समाज के हर वर्ग तक पहुंचा रहा है। मजेदार बात यह है कि ये भी भारतीय संविधान का अपना तरीका है जो सभी को अपनी बात कहने की आज़ादी अपने टाईप से देता है। ट्रकों पर लिखे संदेशों के बाद अब ये टेम्पो टाईप भी अपना टाईप बताते हुए ये सडक़ों पर दौड़ रहे है।
टैक्सी के थोड़ा सा रुकते ही छोटे छोटे बच्चे अपने कटोरे में किसी एक देवता की तस्वीर लिए ‘भला होगा’ कहकर पैर पकड़ लेते हैं तो कभी जोड़ा बनाने लगते है। इन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप अकेले ही सफऱ कर रहे है। दिन के साथ इनके कटोरे के देवता भी बदल जाते हैं और कभी कभी तो एक लोहे के टुकड़े भर से भी काम चल जाता है। तभी एक बच्चा ठन्डे पानी का पाउच हाथों में लिए टैक्सी में चढ़ता है। पूछने पर कि कौन सी क्लास में पढ़ते हो बिना देर किये जवाब देता है हम पढ़ते नहीं दीदी पानी बेंचते है। इसके आगे कुछ भी बोलने को बचा ही नहीं था मेरे पास। ये तो बस कुछ दूरी थी जिसने इतना कुछ सिखा दिया। ऐसे तमाम किस्से बिखरे पड़े हैं हमारे चारों ओर पानी बेचने वाले, सडक़ किनारे गृहस्थी जमाने वाले, सिर पर छ: ईंटें रखे और पीठ पर बच्चा बांधे काम करती बिलासपुरिया औरतें कभी महसूस कर के देखिये इनकी जि़न्दगी को, फिर जीवन दर्शन की खोज में किसी आध्यात्म नगरी नहीं जाना पड़ेगा।
शनिवार, 21 अप्रैल 2012
शहीदों की चिताओं पर नहीं लगते हैं अब मेले..
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा... अमर बलिदानी रामप्रसाद च्बिस्मिलज् की यह पंक्तियाँ हमारी स्वतंत्रता के राष्ट्रयज्ञ में अपने प्राणों की आहुति देने वाले लाखों अमर बलिदानियों की पूज्यनीय अभिलाषा की प्रतीक हैं लेकिन इन अमर शहीदों की इस अभिलाषा पर श्रद्धासुमन अर्पित करने की बजाय हमने उन पर अंगारों को सजाया है.स्वतंत्रता की आधी सदी बीतने के साथ ही हमने उन शहीदों को भुलाने की कृतघ्नता का शर्मनाक परिचय दिया है जिनके रक्त में डूबे अथाह अतल बलिदानों के ऋण से यह देश अनंत काल तक मुक्त नहीं हो सकता । हमारी सरकारें और व्यवस्था हर चीज़ की कीमत देना जानती हैं चाहे आतंकी घटनाओं में मारे गए लोग हो या किसी रेल दुर्घटना के शिकार हुए लोग। राहत कार्य बाद में चलते हैं और मुआवज़े आगे। सरकार के इस रवैये का शिकार सिर्फ आम आदमी ही नहीं बल्कि आज़ादी की लडाई में अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले शहीद, स्वतंत्रता सेनानी और युद्ध में जान गंवाने वाले सेना के जवान भी हैं। भारत पाक युद्ध में दुश्मन के छक्के छुड़ाने वाले वीर अब्दुल हमीद हों या कारगिल में वीरगति पाने वाले कैप्टन मनोज पांडे इन्हें याद करना तो दूर शहीद दिवस पर इनकी प्रतिमाओं पर जमी धूल तक नहीं झाड़ी जाती।
गत आठ अप्रैल को ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आज़ादी का पहला बिगुल फूंकने वाले शहीद क्रांतिकारी मंगल पांडे की पुण्यतिथि थी और भगत सिंह ने असेम्बली में बम फेंका था। इसी दिन देश को राष्ट्रीय गीत च्वन्दे मातरमज् देने वाले बंकिमचंद चट्टोपाध्याय की सुध लेना भी भूल गए। व्यवस्था के चौथे स्तम्भ का ढोल पीटने वाला खुद मीडिया इस कतार में सबसे आगे खड़ा है। आईपीएल के चौके छक्कों, ऐश्वर्या की बेटी, बिग बी की बीमारी, और सनी लियोन की ख़बरों की चाशनी चाटने वाले मीडिया में भी इन सबको दो पंक्तियों की श्रद्धांजलि तक नहीं अर्पित की। ये मीडिया रसूखदारों के उठावनी सन्देश तो पैसे लेकर सेंटीमीटर्स में छाप सकता है पर शहीदों के लिए एक कॉलम की खबर लिखने में कांखने लगता है। कल तेरह अप्रैल को जलियांवाला बाग़ हत्याकांड की 93वीं बरसी थी। इस दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग़ में सैकड़ों निहत्थे लोगों पर ब्रिटिश शासन के अधिकारी आर ई एच डायर ने गोलियां चलाने का निर्देश दिया था जिसके फलस्वरूप लगभग चार सौ लोग मारे गए थे और बारह सौ से अधिक घायल हुए थे। क्रूरता की सभी हदें पार करते हुए इस अँगरेज़ अफसर ने बाग़ से निकलने के एकमात्र रास्ता भी बंद करवा दिए था जिससे कई लोग अपनी जान बचाने के लिए बाग़ में बने एक कुएं में कूद गए थे। हिंदी के एक दो समाचार पत्रों को छोडक़र अन्य किसी ने इसे खबर तो जाने दो गॉसिप के लायक भी नहीं समझा और अंग्रेजी के अखबार जऱदारी यात्रा, अन्ना हजारे,ओबामा मेनिया और विदेशी नीतियों के दिवास्वप्न में खोये रहे हैं। आखिर ये किस जिम्मेवारी के वहन का दावा ठोंकते रहते हैं? सच पूछिए तो गलती हमारी भी है हम राखी सावंत और ब्रिटनी के बारे में तो पल पल की खबर रखते हैं पर शहीदों के नाम पर बगलें झाँकने लग जाते हैं। राष्ट्रवाद की सबसे बड़ी ठेकेदार पार्टी अपने नए अध्यक्ष की ताजपोशी पर बधाई गीत गाने में व्यस्त थी।सत्तारूढ़ समाजवादी खेमा एक मौलाना की क्रोधाग्नि शांत करने के लिए उसके दामाद के राजनीतिक महिमामंडन में मिली सफलता पर मुग्ध था।देश को आजाद करने का दावा करने वाली देश की सबसे बड़ी और पुरानी पार्टी उत्तर प्रदेश चुनावों में मिली माट पर दिल्ली में मातम मना रही थी। राजनीती की मंदी में अपनी फुटकर दुकानें संजोये बैठे छुटभैये राजनीतिक गिरोह सत्तासुख की बन्दरबाँट से खुद के बहार के ग़म में डूबे रहे। किसी को भी इनकी याद नहीं आई।
हम बस घरों में बैठकर भ्रष्टाचार का राग अलाप सकते हैं, बहुत हुआ तो किसी रामलीला मैदान में जाकर पिकनिक मना आयेंगे इससे ज्यादा हमारे बस का है भी नहीं। वीर हमीद की विधवा पेंशन के लिए सालों भटकती रहीं, मनोज पांडे के माता- पिता के पास अपने जिगर के टुकड़े की यादों के सिवा कुछ भी नहीं है। अभी पिछले साल का ही वाकय़ा है जब वीरता के तमगों को भूतपूर्व सैनिकों और शहीदों के परिजनों ने राष्ट्रपति को ये कहकर लौटा दिया कि इन्हें गिरवी रखकर सरकार पेंशन की व्यवस्था कर दे। किसी देश के लिए इससे ज्यादा शर्मनाक बात भला और क्या हो सकती है? वो तो भला हो आमिर खान का जो रंग दे बसन्ती जैसी फिल्में बनाकर हमें कुछ याद दिला देते हैं। वरना हमारे पास उनके बलिदान के बदले बसों और ट्रेनों में आरक्षित कुछ सीटों औरएकाध चौराहों के नाम के सिवा कुछ भी नहीं है।
गुरुवार, 19 अप्रैल 2012
ख़ामोशी से किये गए काम इतिहास रचते हैं
जो दी तोर दाक शोने केयू न अशे तोबे एकला चलो रे....यानि तेरी आवाज़ पे कोई न आये तो फिर अकेला चल रेज्। रविन्द्रनाथ टैगोर जी को ये पंक्तियाँ लिखे एक सदी से भी ज्यादा समय हो चुका है लेकिन इनका असर आप लखनऊ के कुकरैल बंधे के पास बसे अकबरपुर में साफ़ देख सकते हैं। यहाँ अकेले चलने का बीड़ा उठाया है अनीता तिवारी और निरुपम मुखर्जी ने और इनके साथ चल रहे हैं डेढ़ सौ से भी ज्यादा नन्हे कदम जो तमाम दुश्वारियों के बावजूद किताबें थामे हैं। अनीता और निरुपम पिछले बाईस सालों से यहाँ के गरीब बच्चों को बिना रूपये लिए पढ़ा रहे हैं। लखनऊ यूनिवर्सिटी में एमए की छात्रा रहीं और एनजीओ नेटवर्क सोसाईटी में नौकरी कर चुकीं अनीता एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में जब अकबरपुर आई तो उन्हें अंदाज़ा तक नहीं था कि यही बस्ती एक दिन उनके लिए परिवार बन जाएगी। जितनी उनकी होली है उतनी ही ईद । तीन लड़कियों से शुरू हुई उनकी अनोखी क्लास में आज डेढ़ सौ से ज्यादा बच्चे पढ़ रहे हैं । इनकी पढाई कुछ लड़कियों की तो शादी भी हो चुकी है। अनीता बताती हैं कि लड़कियों की पढाई के लिए उनके माता-पिता को राजी करना आसान नहीं था। लेकिन हमने हार नहीं मानी। हमारी ईमानदारी और लगन देखकर लोगों ने यहाँ स्कूल चलाने की अनुमति दे दी। ज़्यादातर हमारा प्रयास यही रहता है कि ये बच्चियां खुद अपने माता पिता को राजी करें। यहाँ के अलावा अनीता और निरूपम एल्डिको ग्रीन पार्क और जीपीओ के पास भी पढ़ाते हैं। निरुपम बताते हैं कि झुग्गियों और हजरतगंज में गाडिय़ों के शीशे साफ़ करने वाले बच्चे हमारे लिए बड़ी चुनौती थे क्यूंकि इनमें से कई ऐसे थे जो आयोडेक्स ब्रेड में लगाकर खाते थे, कोई फेविकोल के दस ट्यूब रोज़ खाता था,तो कोई पेट्रोल सूंघ कर नशा करता। इनमें से कई मोबाईल चोरी का काम भी करते थे। ऐसे बच्चों को हम सही दिशा देकर ऐसे रोजगार में लगानें की कोशिश करते है जिससे वे अपनी आजीविका चलाने के साथ साथ पढ़ाई भी कर सकें। हमारे पढ़ाये ऐसे कई बच्चे हैं जो आज चाय, पान- मसाला और जूस की दुकान चला रहे हैं और कुछ लखनऊ केअच्छे मोटर मैकेनिकों में से हैं। जिस दुकान पर इन्होंने काम सीखा आज उसके मालिक हैं और यहाँ से पढक़र गए बच्चों को भी काम सिखा रहे हैं। ये वही बच्चे हैं जो कभी जेबकतरे हुआ करते थे। अनीता बताती हैं कि हम इन बच्चों को कोई सर्टिफिकेट नहीं दे पाते इसलिए एक से कक्षा पांच तक के बच्चों का प्राईमरी स्कूल में पढ़ाई करते हैं और बाद की पढ़ाई लडक़े राजकीय इंटर कालेज और लड़कियां करामत इंटर कालेज में पूरी करती हंै। कुछ लड़कियों ने इंटर पास किया है। अनीता तिवारी बाराबंकी के कोटवाधाम की और निरुपम मुखर्जी बंगाल के चौबीस परगना के रहने वाले हैं। निरुपम जी सरकारी कर्मचारी भी हैं। भविष्य में एनजीओ बनाने के सवाल पर कहते हैं कि हम घूस नहीं दे सकते और चोरी नहीं कर सकते और जो ये नहीं करता वो एनजीओ कभी नहीं चला पायेगा। हमने लोगों से कभी कोई मदद नहीं मांगी पर कुछ ऐसे लोग हैं जो बिना नाम बताये हमारी मदद करते हैं। लोग हम पर इतना विश्वास इसलिए करते हैं क्यूंकि हमने इनसे कभी झूठ नहीं बोला, इन्हें अपने जैसा बनाने के बजाय खुद इनके जैसे होकर इन्हें पढऩे की कोशिश की। अविवाहित अनीता कहती हैं कि भगवान से यही प्रार्थना है कि जब तक जि़न्दगी है इन बच्चों को पढ़ाती रहूँ।
अनीता और निरुपम हमारे लिए एक मिसाल हैं जिन्होंने मीडिया की चकाचौंध से दूर एक स्वार्थरहित दुनिया बनाई है। इन्होंने साबित कर दिखाया है कि बदलाव कभी भीड़ इक_ी करने से नहीं आता । धारा के विपरीत बहकर ख़ामोशी से किये गए काम इतिहास रचते हैं।
गुरुवार, 12 अप्रैल 2012
ज़रदारी का मनमोहन को प्रेमपत्र
सात सालों की जुदाई आसान नहीं थी. आखिर मैं भी अपने कई पतियों वाले देश में सबकी नजऱों से बचकर दरगाह के बहाने आ ही गया. यहाँ प्रेम की भाषा कोई नहीं समझता बस गोलियों और हाफिज़ की भाषा सभी पाठ्यक्रमों में अनिवार्य कर दी गयी है. मेरी हालत तुमसे बेहतर भला कौन समझ सकता है मैं बस दिखाने भर का पति रह गया हूँ असली पति तो सेना है जिसने मेरी सौतन बनकर जीना मुहाल कर दिया है. इधर हथियारों में काफी खर्चे बढ़ गए सुलह के बावजूद अमेरिका ने भत्ता देना बंद कर दिया है. सोचता हूँ मेरी चीनी और तुम्हारी चाय से कुछ दिन का गुज़ारा तो हो ही जायेगा. अमेरिका के सहयोग से हमारे हाफिज़ को इक्यावन करोड़ का इनाम हुआ है. यूं तो मेरे पचहत्तर प्रेमी हुए हैं पर चीन ने मुझे जो दिया और जो दे रहा है वो हर किसी से छुपा हुआ है. उसने हम दोनों के मिलन में बड़ी मदद की है. तुम्हारे साथ बंद कमरें का डिनर अपनी यादों में संजो के रखूँगा पर हमारा अकेलापन सीमा- रेखा, शांति और अमन को नहीं भाया वहां भी चले आये खलल डालने. मेरे अज़ीज़ तुम्हारी मजबूरियां भी मैं समझता हूँ इसलिए अपना समझकर तुमसे दर्द बाँटने चला आया. ख़ैर बाकी सब खैरियत है उम्मीद करता हूँ आप भी कभी खरियत से हो जाओगे.
-तुम्हारा जऱदारी
बुधवार, 11 अप्रैल 2012
हवा हुए हवाई राजा
मन कि जो हवाई जहाज चुना है वो दारू वाले राजा का है.चाहे तो अपने बोईंग से भर जावेंगे तेल हवा में.पर फिर से कहे देते हैं ये हवाई यात्रा के लक्षण ठीक नहीं.और तो और ये भी हो सकता है कि यात्रा के दौरान पता चले कि 'प्रिय यात्री जिस विमान में आप यात्रा कर रहे हैं उसका लायसेंस रद्द हो चूका है,कष्ट के लिए खेद है'.
पर मेरे सरे ब्रह्मास्त्र खाली पीली बेकार साबित हुए.श्रीमती जी कहने लगीं अपने दारु वाले राजा सा मैंने कहीं न देखा.ऐसा बगुला भगत तो बिना बत्ती कि टॉर्च से भी धुन्धने पर न मिले.अरे! हवाई जहाज में तेल तो अपने तीन चार द्वीप किराये पर उठाकर डलवा दें. उनके तो अपने खुद के ही चार-चार बोईंग वाले विमान हैं चाहें तो...शिर्डी टू
दिल्ली चलवा दें.सोचो जब उनकी नौकाएं ही महारानी हैं तो खुद महाराजा कैसा होगा. रही बात डरेबर कि तनख्वाह की तो तो एक पार्टी के खर्च से चूका दें.और सुनो दिवालिया हों उनके दुश्मन .ऐसा कौन सा खेल है जिस पर उन्होंने मुंह न मारा हों भला.ऐसा हिम्मती काम तो दारुवाले राजा ही कर सकते हैं.हाथ में हीरे का कंगन और गले में सोने का लौकेट पहन कर भीख मांगी है.दिलदार इतने कि बापू के सरे सामान उतने कि रकम चूका कर लाये जितनी बापू ने सपने में न सोची हों.महिला सशक्तिकरण उनके कारन ही फल-फूल रहा. साल भर में एक कैलेण्डर छपवाने के लिए आधे साल विदेशों में रहते हैं.अब बताओ जी कौन सी कमी है मेरे दारुवाले राजा में.मैं उसी दीनता से मुंह लटकाए खड़ा रहा और सोचता रहा- दारु बनाने से दारुबाज थोड़े न हों गया कोई.
मेरी ज ज जान..
सड़क पर पैदल चल रहे एक पैदल टाईप के आदमी से सायकिल \वाला चिल्लाये और कहे कि सड़क तुम्हारे बाप कि है क्या? मोटरबाईक वाला झिड़कता है ...ऐ रिक्शा किनारे और कार वाला हो तो समझ लीजिये कि सड़क सच्चीमुच्ची उसी के बाप की है.आपको बर्दाश्त के बाहर बड़ी जोरों की लगी है और निपटने न दिया जाए. मधुशाला के मद्चूर पुजारी को बस दो चम्मच सुबह-शाम पिलाई जाये.सरकारी शौचालयों में एक रात /पैसे देकर रहने को कहा जाए.बीवी के हाथ पड़ोसन के साथ वाली तस्वीर लग जाये.... यानी कहीं भी कभी भी जब आपकी जान पर बन आये तो समझो नामवाधिकार लुट रहा है मेरी जान. हाँ जी सही सुन रहे हैं आप नामवाधिकार क्यूंकि मानवाधिकार बस नाम का बचा है.एम्बेसडर का सायरन आपके कानों में लगा दिया जाये और उसपर भारत सरकार का बैनर टांग दिया जाये.इस ज़माने के किसी पढ़े-लिखे को किसी नेता की रैली में उसकी बकैती सुनने के लिए निपट अकेला छोड़ दिया जाये.आज के बच्चों को उनके मोबाईल से महज़ पच्चीस सेंटीमीटर दूर कर दिया जाये या फिर फेसबुक पर च टियाने से रोक दिया जाये. नेताओं से एक घंटे सच बोलने को कहा जाये. पुलिस गलती से मौका -ए-वारदात पर पहुँच जाये. फास्ट टरैक अदालतों के मुकदमें महीनेभर में सुलट जयेएं.पडोसी का कुत्ता घर के दरवाजे को खम्भा समझकर टांग उठाकर चला जाये तो..तो समझो नामवाधिकार लुट रहा है मेरी जान.
अमरीका डार्लिंग को इराक,अफगानिस्तान में नामवाधिकार की जाँच कास ठेका दे दिया जाये,आईएसआई को नोबेल प्राईज़ से नवाज़ा जाए.ड्रैगन को इसकी देख-रेख में भिड़ा दिया जाये. इजराईल और इरान को आपस में समधी बना दिया जाये.लिट्टे को श्रीलंका में लोकतान्त्रिक पार्टी का तमगा दे दिया जाये.प्रधानमंत्री के रूप में दलाईलामा ड्रैगन को बौद्ध धर्म ग्रहण करवाएं.मदर इण्डिया इन सबको गोद में बिठा कर सामान प्रेम बरसाएं तो... तो समझो नामवाधिकार लुट रहा है मेरी जान.
तुम छींको तो जुकाम मदर इण्डिया को हो जातो है.घुड़की तो दे ली कश्मीर को लेकर फिर क्यूँ इतना खार खाए बैठे हो लंका मेरी जान. और पाकीजा तुम तो जिंदा ही हो बस मेरे विरोध पर. जीने मत देना मुझको और हम तुम्हें आक्सीज़न देते रहेंगे मेरी जान. सवा सौ- सवा सौ चूहे खाकर क्यूँ हज पर जाती हो अमरीका मेरी जान....तो कहीं भी कभी भी जब आपकी जान पर बन आये तो...तो समझो नामवाधिकार लुट रहा है मेरी जान
अजब बाबा गज़ब बात
अन्डरवर्ल्ड के बाद सबसे ज़्यादा जो धंधा उफ़ान पर है वो है बाबागिरी. गुंडागिरी, उठाईगिरी, दाउदगिरी, नेतागिरी,जैसी हर टाईप की गिरी का तोड़ है पर बाबागिरी का कोई तोड़ नहीं. अब तक पेशे में उपाधियाँ होती थीं, डाक्टर, इंजीनियर, वकील, अफ़सर या फिर फलांचंद सरयूपारीण. ये सब तो पटरा उपाधियाँ लगती थीं असली वाली तो छात्रसंघई के सदाबहार दिनों में गुंजायमान होती थीं-अलाना सिंह उफऱ् 'अन्ना', ढिमकानाभाई उफऱ् 'पिंटू'. कसम से गज़ब का इम्प्रेसन जम जाता था पर इन सबकी भी कमरतोडू उपाधियाँ पाई जाती हैं बाबागिरी के पेशे में.. जैसे श्री 1001 बाबा अनशनानंद जी,श्री 5001 बाबा जटाधारीनन्द जी.ये सब तो डेमो भर हैं बड़ेवाले बाबाओं के अब तो आई.आई.टीएन भी बाबागिरी में छपाक से कूद पड़े हैं.ऐसे में बाबागिरी का लेवल ही चेंज हो गया है.
भूखे,सताए चीकट लोगों के लिए नहीं है बाबागिरी ये उनके लिए है जो नटई तक गांज के इतना पेट भरे हैं कि डकार लें तो एक आदमी भर का खाना बाहर आ जाये भक से.ये दीन दुनिया से अघाए अरबों डॉलर के द्वीप बसाते हैं. रुपयों से मोहभंग हो चुका इनका. और तो और कुछ तो मंकीवाले भगवान टाईप के खोजी हो गए हैं.संजीवनी खोज लाये और उसी के इम्पोर्ट एक्सपोर्ट में जुटे पड़े हैं.कभी कुकुरासन तो कभी ऊटपटांगासन सिखाते हैं और मनुष्य नमक जीव घंटों इस मुद्रा में बिता देता है. ये स्पेशल टाईप कि बाबागिरी बड़ी हाईफाई हो चली है. मीडिया नाम के पालतू से बड़ा चिपकाव महसूसते हैं, बयानों की रोटीफेंकते रहते हैं उसके सामने.पर ये लती फेंकी रोटी खाता ही नहीं जो मुंह में हो वही ले उड़ता है. इधर श्री श्री 2000वन वाले बाबा जी के साथ बड़ा ख़ूबसूरत हादसा हो गया.गुलाबी नगरी में गुलाबी सा बयान दे बैठ्यो की-सरकारी स्कूल न जइयो खाली प्राईवेट स्कूल जईयो.वजह पूछो तो यही कि प्राईवेट वाले मनु शर्मा, विकास यादव और मोह्न्दर सिंह पंधेर सरीखा अनुशाशन सीखे हैं और सरकारी वालों को नक्सली होने का चस्का लग जाता है अपने कलाम साहब कि तरह.बड़ा ग्लो है इन बाबा के काले केशों से सुसज्जित चेहरे पर.किसी फेयरनेस कंपनी का ऐड तो बिना देखे ही मिल जाये और उस पर से लांड्री में धुली 6 गज ,का झक सफ़ेद ड्रेस इनकी पर्सनैलिटी में आठ चाँद लगा देता है.
36 हज़ार करोड़ रूप हैं बाबा के कभी माखनचोर तो कभी नवाबी स्टाईल में परकट होते हैं.अईसा वईसा बाबा न समझ्यो इनका.एयरकंडीशंड कमरों में पसर कर जीने की कला सिखाते हैं. सडक़ पर पड़ी नहीं पाई जे कला. जौन सी उम्र मां ध्यान कहीं और होना चाहिए उस उमर में 10 दिन के मौन में चले गए. जब बहार निकले तो पप्पू की जैसे चिल्ला पड़े -मैं तो जीने की कला पायो,सुदर्शन क्रिया पायो.बस वही वो राहुकाल था जिस बखत 2000वन वाले बाबा के पांव फिसल गए. फिर फिसले तो ऐसा फिसले की फिसलते गए बस फिसलते गए और श्री श्री 2000वन आर्ट ऑफ लिविंग संस्था पर आकर टिके. अईसे वईसे बाबा नहीं हैं ये दो बार श्री श्री वाले बाबा हैं.ठीक वैसे ही जैसे बहुतय खऱाब चीज़ को दो बार छि: छि: कहना पड़ता है.जीने की कला सिखाते हैं जी भरे पेट से. बड़े ही त्रिकालदर्शी हैं दो बार श्री श्री वाले बाबाजी.उन दस दिनों की फिसलन अज तक जारी है.अमरीका लन्दन खान खान नहीं फिसले.हाल में पकिस्तान तक फिसल कर आये हैं. वहे के बाद से बक रहे कि प्रेम का पुजारी हूँ तालिबान से सम्जहौता करा सकता हूँ.पालिटिक्स तक पांव फिसले इससे पहिले श्री श्रे 2000वन वाले बाबा सरकारी स्कूल 'पर फिसल गये. इस बार बिजिनेस की कला पायो. लगता है गुरूजी ग्रुप ऑफ इन्सटीट्युट खोलने वाले हैं प्राईवेट वालों के श्री श्री 2000वन वाले बाबाजी.
जोगी जी वाह
इस कलयुग में ऐसा कौन है जो सिर्फ देना जानता हो. देना जी बैंक वालों का तो बट्टा लग गया. आपकी छठी इन्द्रिय विकसित मानी जाती है. जिससे सब कुछ पहले ही जान लेते हैं यानि जो न घटित होने वाला हो वो भी घट जाता है.भई जोगी जी वाह! कहीं जनरल सिंह वाला तोप- पत्र आपकी इन्द्रिय ने ही तो नहीं लीक कर दिया. आपके भक्तगण इन्द्रिय विहीन हो गए हैं तभी तो छठी इन्द्रिय आपके हाथ लगी. आप फोन पर बात करके ही गंभीर समस्या का अंत कर देते है. अगर रात रात भर लोग आपसे फोन पर बात करेंगे तो नशीली बातें करने वाली टीना और डॉलीका क्या होगा.क्यूँ पेट पर लात मरते हो उनकी. आपके समागम का प्रसारण 25 घंटे चैनलों पर हो रहा. क्या जुगाडमेंट किया है धंधे में फिट होने का. जब लोग दिन के चौबीस में से पच्चीस घंटे उद्धार करवाएंगे और निपटने तक के लिए नहीं उठेंगे तो बीमारियाँ प्रसाद स्वरुप मिलेंगी. लौट के फिर आपसे उद्धार करवाने आयेंगे. दुकानदारी की छठी इन्द्रिय दस दिनों के भीतर विकसित की है. भई जोगी जी वाह!
रेलवे वालों को आपसे सीख लेनी चाहिए. दो साल के बच्चे की रजिस्ट्रेशन फीस दो हज़ार है. हाफ टिकट का चांस ही नहीं है. योग बाबा, श्री श्री बाबा, आशा वाले बाबा सबसे आगे निकल गए...दस साल पहले ठेके वाली फील्ड में थे . न न गलत मत समझिये फील्ड बिना बदले ही माल बदल दिया है. आशीर्वाद देने का स्टाईल भी अलग. फेसबुक पर लाईक करो और आशीर्वाद अपडेट. भई जोगी जी वाह! कबीर जी अगर आप होते तो यही कहते कि निर्मल नियरे राखिये फेसबुक पर फ़ॉलो कराय, बिन दारू दवा के चौकस करे सुभाय.
मंगलवार, 10 अप्रैल 2012
हद कर दी मौलाना जी
हे मदिरा मईया तुमने मुझे क्या कुछ नहीं दिया. आपके सानिध्य में मैं खुद को ओबामा, शाहजहाँ समझता रहा.सडक़ को सडक़ नहीं समझी रात रात भर पड़ा रहता था.कितनी सरकारें ठेके पर बैठ कर बनायीं बिगाड़ी. जो दिव्य दृष्टि आपके सेवन से पाई वो लन्दन के बड़े बड़े डाक्टर तक न दे पाए.बंद आँखों से जो नज़ारे देखे वो खुल्ली आँखों से भी न दिखाई दिए. पर हे मदिरा मईया अब सोचता हूँ की पीना छोड़ दूं.
मेरी पड़ोसन अपने पियक्कड़ पति को समझ रही थी कि चुप रहो वर्ना फ़तवा आ जायेगा. पडोसी को जितना मन हो गरियाना, चाहो तो ताजमहल किराये पर उठा दो, ओबामा को ड्राईवर बना लो, एन्जिलिना जोली को कामवाली बना लो मगर चुप रहो वरना फ़तवा आ जायेगा. दारु उलूल जुलूल के पप्पू ने फ़तवा जारी किया है कि इस्लाम में सोमरस पीना गुनाह है पर तुम पियो और ऐसे वैसे मत पियो, दबा के पियो बस तलक न कहियो दारू पी के. पप्पू जी इस्लाम कि पांचवी कभी पास ही नहीं का पाए. कहीं महिलाओं को ही इस्लाम में गुनाह न साबित कर दें दारु पी के.
इधर कुछ दिनों से बदले बदले से सरकार नजऱ आते हैं. कुछ कहावतें बदलने के आधार नजऱ आते हैं. जैसे कि मुल्ला की दौड़ बस महिला तक, आसमान से गिरे और महिला पर अटके.मालाएं छोटे कपडे न पहने,मोबाईल पर बात न करें. महिलाएं अगर न होती तो मुल्ला न होते, मुल्ला न होते तो फतवे न होते. सब कुछ जोड़ घटा जके पियक्कड़ों सावधान! सब कुछ करियो पर तलक तलक न खेलियो दारु पी के वर्ण अवाही वाला फ़तवा आ जायेगा. तो साथ में कहिये..... लकड़ी की काठी काठी का ???? का घोडा बिल्कुल नहीं. काठी का कठमुल्ला.
मेरी पड़ोसन अपने पियक्कड़ पति को समझ रही थी कि चुप रहो वर्ना फ़तवा आ जायेगा. पडोसी को जितना मन हो गरियाना, चाहो तो ताजमहल किराये पर उठा दो, ओबामा को ड्राईवर बना लो, एन्जिलिना जोली को कामवाली बना लो मगर चुप रहो वरना फ़तवा आ जायेगा. दारु उलूल जुलूल के पप्पू ने फ़तवा जारी किया है कि इस्लाम में सोमरस पीना गुनाह है पर तुम पियो और ऐसे वैसे मत पियो, दबा के पियो बस तलक न कहियो दारू पी के. पप्पू जी इस्लाम कि पांचवी कभी पास ही नहीं का पाए. कहीं महिलाओं को ही इस्लाम में गुनाह न साबित कर दें दारु पी के.
इधर कुछ दिनों से बदले बदले से सरकार नजऱ आते हैं. कुछ कहावतें बदलने के आधार नजऱ आते हैं. जैसे कि मुल्ला की दौड़ बस महिला तक, आसमान से गिरे और महिला पर अटके.मालाएं छोटे कपडे न पहने,मोबाईल पर बात न करें. महिलाएं अगर न होती तो मुल्ला न होते, मुल्ला न होते तो फतवे न होते. सब कुछ जोड़ घटा जके पियक्कड़ों सावधान! सब कुछ करियो पर तलक तलक न खेलियो दारु पी के वर्ण अवाही वाला फ़तवा आ जायेगा. तो साथ में कहिये..... लकड़ी की काठी काठी का ???? का घोडा बिल्कुल नहीं. काठी का कठमुल्ला.
लीक हो गया न..
लीक भी अलग- अलग टाईप की होती हैं.लीक से हटकर काम करते समय कुछ सावधानियां भयंकर रूप से अनिवार्य होती हैं क्यूंकि लीक से हटकर काम करते वक़्त लीक होने के खतरे एक सौ एक फ़ीसदी बढ़ जाते हैं. उदाहरण के तौर पर जनरल सिंह ने नौकरी के रिटायर्मेंटहोवा मोड़ पर लीक से हटकर काम करने की कोशिश की पर सावधानी न बरतने की वजह से बी तरह से लीक हो गए. इनके केस से हमें यही सीख मिलती है की लीक करने के समय का विशेष ख्याल रखा जाय.लीक करते समय तो बड़ा आनंद अत है पर लीकेज के के फैले रायते को बटोरना बड़ा ही कठिन कार्य होता है.ऊपर से दिग्गी और आजम खान जैसे लीकेज केमहराठी अपने अपने तरीके से इसे फैलाना शुरू कर दें तो ये मीडियाअवतार धारण कर लेता है.
कई बार लीकेनजायटिस की बीमारी जान कर फैलाई जाती है की आ लीकेनजायटिस इसे लीक कर दे. लीक करौवा किसी भी हद तक जा सकते हैं.जनरल के मामले में भी यही आसार नजऱ आ रहे हैं.शायद हथियार बनाऊ कम्पनियाँ हमारी लीकेज क्षमता का लाभ उठाकर अपने कुछ सामान बेचा चाहती है. तो इस प्रकार हमने जाना की लीकेनजायटिस की बीमारी दाल असरकारक है. एक को हनी तो दुसरे को उसी मात्रा में लाभ पहुंचती है.तो आगे से जब भिलीक्से हटकर काम करिए तो लीक होने के खतरों का गहन अध्ययन कर लीजिये.
हवा हुए हवाई रजा
मन कि जो हवाई जहाज चुना है वो दारू वाले राजा का है.चाहे तो अपने बोईंग से भर जावेंगे तेल हवा में.पर फिर से कहे देते हैं ये हवाई यात्रा के लक्षण ठीक नहीं.और तो और ये भी हो सकता है कि यात्रा के दौरान पता चले कि 'प्रिय यात्री जिस विमान में आप यात्रा कर रहे हैं उसका लायसेंस रद्द हो चूका है,कष्ट के लिए खेद है'.
पर मेरे सरे ब्रह्मास्त्र खाली पीली बेकार साबित हुए.श्रीमती जी कहने लगीं अपने दारु वाले राजा सा मैंने कहीं न देखा.ऐसा बगुला भगत तो बिना बत्ती कि टॉर्च से भी धुन्धने पर न मिले.अरे! हवाई जहाज में तेल तो अपने तीन चार द्वीप किराये पर उठाकर डलवा दें. उनके तो अपने खुद के ही चार-चार बोईंग वाले विमान हैं चाहें तो...शिर्डी टू
दिल्ली चलवा दें.सोचो जब उनकी नौकाएं ही महारानी हैं तो खुद महाराजा कैसा होगा. रही बात डरेबर कि तनख्वाह की तो तो एक पार्टी के खर्च से चूका दें.और सुनो दिवालिया हों उनके दुश्मन .ऐसा कौन सा खेल है जिस पर उन्होंने मुंह न मारा हों भला.ऐसा हिम्मती काम तो दारुवाले राजा ही कर सकते हैं.हाथ में हीरे का कंगन और गले में सोने का लौकेट पहन कर भीख मांगी है.दिलदार इतने कि बापू के सरे सामान उतने कि रकम चूका कर लाये जितनी बापू ने सपने में न सोची हों.महिला सशक्तिकरण उनके कारन ही फल-फूल रहा. साल भर में एक कैलेण्डर छपवाने के लिए आधे साल विदेशों में रहते हैं.अब बताओ जी कौन सी कमी है मेरे दारुवाले राजा में.मैं उसी दीनता से मुंह लटकाए खड़ा रहा और सोचता रहा- दारु बनाने से दारुबाज थोड़े न हों गया कोई.
फूल डे
आज पहली तारीख है. ये पहली बाकी वाली पहलियों से अलग है. पहली की तो बात ही अलग होती है क्यूंकि पहली चीजं से लोगों का भावनात्मक जुडाव होता है. पहली कार, पहली मार, पहली जॉब और पहला प्यार तो कम्पलसरी सा लगता है. डे मतलब सिर्फ हॉली डे या सप्ताह के सात दिन नहीं रह गए. डे सेलीब्रेट करने का फैशन बालीवुड में हीरोईन के ब्यॉयफ्रेंड बदलने जैसा हो गया है. साल में अगर सात सौ तीस दिन भी हों तो कम पड़ जायें डे- मनौव्वल के लिए. आज फूल डे है. फूल से गुलाब या चम्पा चमेली मत समझ लीजियेगा. चलिए इसे जऱा दूसरे तरीके से समझते है. खबर है कि पेट्रोल के दाम घट सकते हैं. अभी तक अदालत में जुर्म साबित करना पड़ता था, नेताओं को बेदाग साबित किया जाता था, कौन सी हेरोईन का अफेयर किसके साथ है ये साबित करना पड़ता था अब यूपी सरकार कह रही कि बहुत साबित कर लिए जऱा खुद को बेरोजगार साबित करके दिखाइए तो जाने. युवराज पॉलिटिक्स से सन्यास की घोषणा करें. पुलिस थानों में रात की ड्यूटी जागते मिलें, सरकारी बाबू लोग घूसपान निषेध घोषित कर दें. पाकिस्तान पूरा का पूरा कश्मीर फ्रेंडशिप डे पर भारत को गिफ्ट कर दे वो भी पहली तारीख को तो समझिये की फूल डे है.
इस दिन कई तथाकथित बुद्धिमान दूसरे बुद्धिमान को फूल बनाने की मूर्खई करते हैं. और फिर उल्लू बनाने की ख़ुशी में फूल फूलकर कुप्पा होते है. ये कुछ वैसा है जैसे किसी फ्लॉप फिल्म पर हिरोईन कहे की मैं अलग तरह की फिल्में करना चाहती हूँ, जहाँ लिखा हो कि थूकना मना है वहां पिच्च पिच्च करना छोड़ दें. या फिर हिंदी फिल्मों से रोमांस का लोप हो जाये.तो समझिये कि आज फूल डे है.
गुरुवार, 5 अप्रैल 2012
मोहे गरीब न कीजो
एयरकंडीशंड कमरे में बैठकर हजारों का सूट पहने हुए एक साहब जी ने गरीबी को अपने अफलातूनी तराजू बाँट से तोला है. उनकी मानो तो शहर में 28.65रूपये और गांवों में 22.42 कमाने वाला गरीब नहीं. गज़ब की बनियागीरी लगाई है मानक तय करने में साहब जी ने। साफ़ पता चल रहा है कि परदेश से पढाई कर के आ रहे. अरे चचा दशमलव की गिनती तो छोड़ दिए रहते.बताओ तो भला अब बेचारा अनपढ़ गरीब कैसे गुणा भाग लगाएगा. गरीबी के मुंह पर खाली जूता मारे होते तब पर भी चलता पर अपने तो भिगो भिगो के मारा है. जो चवन्नी अठन्नी कोई लेने को तैयार नहीं उसे भी नहीं छोड़ा. पता नहीं कौन सा बखत चल रहा अब गरीब गरीब न रहा . साहब जी ये बताओ कि गरीबी की ये लेडीज रेखा बनाने की कितनी तनख्वाह पाते हैं. गरीबी की फ़ील्ड में बिना उतरे हवाई जहाजी दौरा कर लिया आपने. कैलोरी नाम की लोरी सुन के नींद नहीं आती जब तक अन्न न जाये पेट में.
क्या जरुरत थी ये गंजई दिखाने की.चवन्नी अठन्नी के फेर में पड़ गए.वैसे गलती आपकी भी नहीं है. अब राजधानी में कहाँ पाए जाते हैं गरीब. वहां के तो कुत्तों का स्टेटस भी ऊंचा है. गरीबी तो खुजली हो गयी जितना इलाज करो उतना ही बढ़ेगी. राजधानी वाले एक दूसरे का स्टेटस यूं पूछते होंगे. क्यूँ तू कौन सा वाला गरीब है - सायकिल वाला गरीब या फिर मोटरसायकिल वाला.अगर है तो नीला कार्ड बनवा ले. मारुती 800 वाले तो एपीएल कैटेगरी में आते हैं. किटी पार्टियों में लिपस्टिक बिंदी और साड़ी के बजाय गरीबी चर्चा में है. मिसेज वर्मा मिसेज शर्मा से कह रही थीं आप तो तरक्की कर रहीं हैं अल्टो से मर्सिडीज वाली गरीब हो गयीं. हमको देखिये अब भी मेट्रो वाले गरीब ठहरे.
गरीबी का भी अपना स्टेटस हो गया है. आईटम सॉन्ग पर न के बराबर कपड़ों में थिरकती हीरोइनों के दिल से पूछो गरीबी का हाल या फिर नयी फिल्म के लिए जीरो से माईनस के फिगर में जाती बालाओं से. अबके नवरात्रों में मईया से यही दुआ रहेगी की किसी मंत्री का कुत्ता बना दियो, किसी हीरोईन के पैर की सैंडिल बना दियो पर मईया मोहे गरीब न कीजो.अगर फिर भी कीजो तो सिर्फ एक हवाई जहाज वाला गरीब कीजो, डायमंड वाला न सही गोल्ड वाला गरीब कीजो पर हे मईया कुछ भी कीजो मोहे गरीब न कीजो. साहब जी गरीबी अगर बदनाम हुई है तो सिर्फ आपके कारन. वरना गरीबी बड़े गहरे पानी की मछली थी आप जैसे मछुआरों के हाथ न आनी थी. पर आ गयी न तो अब देख लीजिये हाल अपनी आँखों से.पता नहीं आपके स्कूलों में वो कहावत पढाई जाती की नहीं -जिसकी बंदरिया होती है उसी से नाचती है.अगर नचा दी है तो हाल यही गरीबी वाला होगा. साहबजी हमरी न मानो तो आपने बिग बी से पूछो की कैसे पोलिटिक्स वाली बंदरिया के फेर में पड़े थे.जित्ता रुपया आप बताये रहे उत्ते में तो बच्चे का लंगोट न आवे है आप उतने में गरीबी हटा रहे. पढ़े लिखे लोग बाग ऐसे मजाक कर देते हैं कि पैर तो छोड़ो पूरा का पूरा आदमी जमीन में धंस जाये. मईया ऐसे में सब कुछ कीजो पर गरीब न कीजो.
क्या जरुरत थी ये गंजई दिखाने की.चवन्नी अठन्नी के फेर में पड़ गए.वैसे गलती आपकी भी नहीं है. अब राजधानी में कहाँ पाए जाते हैं गरीब. वहां के तो कुत्तों का स्टेटस भी ऊंचा है. गरीबी तो खुजली हो गयी जितना इलाज करो उतना ही बढ़ेगी. राजधानी वाले एक दूसरे का स्टेटस यूं पूछते होंगे. क्यूँ तू कौन सा वाला गरीब है - सायकिल वाला गरीब या फिर मोटरसायकिल वाला.अगर है तो नीला कार्ड बनवा ले. मारुती 800 वाले तो एपीएल कैटेगरी में आते हैं. किटी पार्टियों में लिपस्टिक बिंदी और साड़ी के बजाय गरीबी चर्चा में है. मिसेज वर्मा मिसेज शर्मा से कह रही थीं आप तो तरक्की कर रहीं हैं अल्टो से मर्सिडीज वाली गरीब हो गयीं. हमको देखिये अब भी मेट्रो वाले गरीब ठहरे.
गरीबी का भी अपना स्टेटस हो गया है. आईटम सॉन्ग पर न के बराबर कपड़ों में थिरकती हीरोइनों के दिल से पूछो गरीबी का हाल या फिर नयी फिल्म के लिए जीरो से माईनस के फिगर में जाती बालाओं से. अबके नवरात्रों में मईया से यही दुआ रहेगी की किसी मंत्री का कुत्ता बना दियो, किसी हीरोईन के पैर की सैंडिल बना दियो पर मईया मोहे गरीब न कीजो.अगर फिर भी कीजो तो सिर्फ एक हवाई जहाज वाला गरीब कीजो, डायमंड वाला न सही गोल्ड वाला गरीब कीजो पर हे मईया कुछ भी कीजो मोहे गरीब न कीजो. साहब जी गरीबी अगर बदनाम हुई है तो सिर्फ आपके कारन. वरना गरीबी बड़े गहरे पानी की मछली थी आप जैसे मछुआरों के हाथ न आनी थी. पर आ गयी न तो अब देख लीजिये हाल अपनी आँखों से.पता नहीं आपके स्कूलों में वो कहावत पढाई जाती की नहीं -जिसकी बंदरिया होती है उसी से नाचती है.अगर नचा दी है तो हाल यही गरीबी वाला होगा. साहबजी हमरी न मानो तो आपने बिग बी से पूछो की कैसे पोलिटिक्स वाली बंदरिया के फेर में पड़े थे.जित्ता रुपया आप बताये रहे उत्ते में तो बच्चे का लंगोट न आवे है आप उतने में गरीबी हटा रहे. पढ़े लिखे लोग बाग ऐसे मजाक कर देते हैं कि पैर तो छोड़ो पूरा का पूरा आदमी जमीन में धंस जाये. मईया ऐसे में सब कुछ कीजो पर गरीब न कीजो.
मंगलवार, 3 अप्रैल 2012
काहे को बईयाँ मरोड़ते हो बेचारी अबला सरकार की. मरोड़ते कम हो खुद ज़्यादा तुड-मुड़ जाते हो. चिंता को दूर से ही प्रणाम कर लो. चिंता चिता के समान है. आप तो ब्रह्मचारी ठहरे और चिंता- चिता दोनों लेडीज. सरकार और राजनीति भी लेडीज, दोनों बड़ी वाली झु_ी हैं .अब तो छोडो इनका हाथ और पहचानों इनकी ज़ात.लोकपाल के लिए अब दूजा ढूँढो कोई बहाना. और ये क्या जिद पकड़ लिए हैं चौदह मंत्री टाईप के गुंडों पर ऍफ़आईआर दर्ज करने की. अगर ऐसा हुआ तो सरकार जेलों से ही चला करेंगी. अन्ना मेरे कुछ भी करना पर अनशन पे मत जाना.लोकपाल के लिए अब दूजा ढूँढो कोई बहाना. पिछले अनशन पर जो चिल्ल-पों मीडियावालों ने मचाई थी अबकी चिया के बैठे रहे. आपको सचिन और नक्सलियों ने ओवरटेक कर दिया है. पूरे पन्ने से एक कॉलम में आ गए. ऐसा गिराव तो सेंसेक्स में भी कभी न आया. हाँ चैनल वाले अन्ना अनशन को वेलेनटाइन डे की तरह लेते हैं.उनका अनशनप्रेम जगज़ाहिर है इसीलिये मुफत की सलाह दे रहे हैं कि अन्ना मेरे कुछ भी करना पर अनशन पे मत जाना.सरकार ने जो तिकड़मबाजी लगायी अब तो जान गए न.गधे की दुलत्ती तो इन्सान भूल सकता है पर सरकारी दुलत्ती नहीं. चलो जो भी हुआ उसे जाने दो. बहुत कर लिए ये धनश्याम धनश्याम. काजल की कोठरी में से आप तो साफ़ सुथरे निकल आये पर आपकी अन्नासेना कालिख से होली खेलती निकली बाहर. हाय रे! कैसी आपकी तक़दीर, लोकपाल में फंस गया जाने कौन सा तीर. जऱा अपने तीन वानरों की आँखों में कूदकर डुबकी लगाओ और देखो कौन से वाले सपने देख रहे हैं लोकपाल के बहाने. तीनों को सेंटरफ्रेश खिलाओ. यूं ही मुंह खोलते रहे तो बंटाधार कर देंगे आपका.केजरी जी नायक वाली स्टाईल में सब बदलना चाहते हैं. सबसे रीसेंटवाला बयानी दौरा पड़ा है जिसमें कह रहे कि बागी तो बीहड़ में रहते हैं संसद में डाकू रहते हैं.अब ये भी बता दीजियेगा कब मेहमान बन रहे आप संसद के.
काहे को बईयाँ मरोड़ते हो बेचारी अबला सरकार की. मरोड़ते कम हो खुद ज़्यादा तुड-मुड़ जाते हो. चिंता को दूर से ही प्रणाम कर लो. चिंता चिता के समान है. आप तो ब्रह्मचारी ठहरे और चिंता- चिता दोनों लेडीज. सरकार और राजनीति भी लेडीज, दोनों बड़ी वाली झु_ी हैं .अब तो छोडो इनका हाथ और पहचानों इनकी ज़ात.लोकपाल के लिए अब दूजा ढूँढो कोई बहाना. और ये क्या जिद पकड़ लिए हैं चौदह मंत्री टाईप के गुंडों पर ?फ़आईआर दर्ज करने की. अगर ऐसा हुआ तो सरकार जेलों से ही चला करेंगी. तब का करिहैं अन्ना भैया. इसीलिए कह रहे अन्ना मेरे कुछ भी करना पर अनशन पे मत जाना.



