बुधवार, 7 नवंबर 2012

इरोम की अनदेखी क्यों

भारत के सेवन सिस्टर्स कहे जाने वाले राज्यों में से एक मणिपुर की बेटी हैं इरोम शर्मिला. १४ मार्च १९७२ को जन्मी इरोम को आम लड़कियों की तरह ही थीं. लेकिन उनकी ज़िन्दगी के मायने २ नवम्बर २००२ को मालोम के बस स्टैंड पर घटी एक घटना ने बदल दिए. उस वक़्त एक सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता इरोम एक शांति रैली की तैयारी में थीं. उस दिन सेना के सशस्त्र बलों ने दस बेगुनाह लोगों की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी. कई सारे लोगों की तरह इरोम भी उस घटना की प्रत्यक्षदर्शी थीं. लेकिन इस घटना ने इरोम इतना आहात किया की उसके अगले ही दिन ३ नवम्बर से वो सशस्त्र बल विशेसधिकार कानून के विरोध में अनशन शुरू कर दिया. ठीक उसके तीन दिनों बाद इरोम को आत्महत्या के प्रयास के जुर्म में सरकार ने गिरफ्तार कर लिया. तब से आज तक इरोम साल भर में सिर्फ तीन चार दिनों के लिए बाहर आती हैं और फिर से जेल में डाल दी जाती हैं. इरोम चानू शर्मिला की व्यथा भले ही दिल्ली में बैठी सरकारें या देशवासी न समझते हों पर जवाहर लाल नेहरु अस्पताल में  टेंट से बना वो वार्ड बारह सालों से इरोम की दृढ़ इक्छाशक्ति का गवाह रहा रहा है जहाँ उन्हें पिछले बारह सालों से नाक से जबरन तरल पदार्थ ठूंसा जा रहे हैं जिससे वे मर न सकें. इरोम के का ये अनशन दुनिया का सबसे लम्बे समय तक चलने वाला अनशन है लेकिन उनका नाम कहीं नहीं दर्ज है. कुछ ऑनलाइन वेब साईट्स को छोड़ कर मुख्यधारा के किसी भी मीडिया संस्थान को इरोम के इस संघर्ष में कोई दिलचस्पी नहीं है.  बात ये नहीं कि हम किस तरह के भविष्य कि और अग्रसर होंगे ऐसे अनशनों से. यहाँ मसला ये है कि क्या हम इतने संवेदनहीन समाज में रहते हैं कि यहाँ किसी कि नहीं सुनी जाती. यह सच है कि इरोम कि जो मांगे हैं अगर उन्हें मांग लिया जाये तो भारत की अखंडता खतरे में पड़ जाएगी. बारह सालों से चले आ रहे इस अनशन की अनदेखी कर के हम किस भविष्य की और बढ़ रहे है? क्या इससे अशांति नहीं बढ़ रही..क्या सरकारों को नहीं जैसे ही यह मुद्दा उठा था संज्ञान में नहीं लेना चाहिए था... अगर ऐसा करती तो ये बात इतनी संवेदनशील न होने पाती...ये सच है की अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता लेकिन सनद रहे इरोम भी अकेली है और बारह साल से अकेली जिसने भारत सरकार सहित सेना की साख पर भी बट्टा लगा दिया है.. कुछ लोगों के ये तर्क हो सकते हैं की सेना की वजह से देश सुरक्षित है....बोर्डर पर शहीद जवानों की सुध कोई नहीं लेता...वगैरह वगैरह...मैं सेना की कर्तव्यनिष्ठ पर कोई प्रश्नचिंह नहीं लगा रही लेकिन सिर्फ कुछ घटनाएं सरे किये कराये पर पानी फेर देती हैं.जैसा की पूर्वोत्तर में हुआ...मैं सिर्फ इतना कहना चाहती की हम ऐसे किसी भी मुद्दे खासकर सेना की ज्यादती से जुड़े मुद्दों की अनदेखी बिलकुल न करें. सेना को देश की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया है महिलाओं और बेकसूरों के साथ बदसलूकी के लिए नहीं...आपसी बात से हमने बड़े बड़े मुद्दे हल किये हैं...और एक बात मुम्बई हमलों में पकिस्तान की भूमिका पता होने के बाद भी हम उनसे गलबहियां करने को उताव्लें हैं तो फिर क्यों अपने ही देश की एक नागरिक के साथ ऐसा सुलूक किया जा रहा है..कम से कम उसे सुना तो जाये. इरोम की मांग नाजायज़ हो सकती पर एक महिला और इंसान होने के नाते उसे सुनना होगा.......................

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