ग़म के आसुओं के रंग को
उड़ जाने दो
थाम के हाथ एक दुसरे में
खो जाने दो
पैहरन के सब रंग फिज़ा में
घुल जाने दो
फिर से रंग दें कुछ नए पौधे
आओ कोई ख्वाब बुने कल के वास्ते
जाड़ों की धुप सी यादों में पका लें
ख़ुशी के सुनहरे धागे
वक़्त की तकली 'पर
नचायें घुमाएं और मिट जायें
आओ कोई ख्वाब बुने कल के वास्ते
थाम कर नफरत की मशालें
बस्तियां बहुत जलायीं
मजहबों के नाम पर
नींव कोई गहरी धरें दोस्ती के वास्ते
आओ कोई ख्र्वाब बुने कल के वास्ते
ये ज़मीं थी जो सरहदें तय कर लीं
नदियाँ भी मोड़ दीं पर
समंदर पे बस चले कहाँ
आसमान की चादर तानें एक छत के वास्ते
आओ कोई ख़्वाब बुनें कल के वास्ते
अब महल दुमहले लौटेंगे
खंडहरों में वक़्त की चाल जानने
गीली मिटटी है जोश हमारा
आहिस्ता चाक घुमाओ नए सृजन के वास्ते
आओ कोई ख़्वाब बुनें कल के वास्ते
पंख पसार दिए हैं मैंने
सपनों के असीम गगन में
हौसला तुम मेरा बनो उड़ान के वास्ते
आओ कोई ख़्वाब बुने कल के वास्ते
नैनों का ये अजब चलन है
न कुछ तुम कहो
चुप हम भी रहे परिचय के वास्ते
आओ कोई ख़्वाब बुने कल के वास्ते
बहुत सुन्दर और सार्थक सृजन, बधाई.
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर भी पधारकर अपना स्नेहाशीष प्रदान करें, आभारी होऊंगा.