देता है ठंडक,
बिछड़े प्रेमियों को,
कितना बेबस; निश्तेज है,
सूरज के सामने,
ये चाँद भोर का....
सदियों से रहा है,
कल्पना में कविओं की,
रात का चाँद ही,
कितने ही गीत लिख गए,
जाने कितने कवि बन गए
पर पड़ी नज़र न अब तक,
कि कैसा है?
ये चाँद भोर का.....
बन जाता है हर किसी का,
रातों का साथी,
सुध लेता नहीं कोई इसकी,
सुबह होने पर,
पूछा करता है अक्सर,
रात गुज़री कैसी?
संग मेरे...
ये चाँद भोर का....
कहा करते हैं लोग,
ख़ुद को सूरज,
तैयार हैं चमकने को,
नीले आकाश में,
बनने को राज़ी नहीं है कोई,
ये चाँद भोर का....
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें