जीने मरने की कसमें
इस कड़ी में सबसे पहले संवाद मरा
फिर वो सब बातें
घर पहुँचने का लम्बा वाला रास्ता
चूड़ी के बदले लिया गया कड़ा मरा
दुपट्टे के छोर से उलझ गया वक़्त और
टांकने के बहाने लिया था जो
कुरते का बटन भी मर गया
दीवार परकैलेण्डर की पीठ का निशान
पुरानी तारीख़ पर लगा नया गोला
मनौती के पेड़ पर खुरचा
बिना हाशिये का नाम
चोरी से रखे गए सलामती के
व्रत-उपवास मरे
फिर एक दिन तुमने कहला भेजा
भिजवा दो मेरा वो एकलौता ख़त
जिसमें लिखा था छुपाकर
मेरे नाम का सिर्फ़ पहला अक्षर
अनचीन्हा सा डर रहा होगा
तभी तो तुमने बढ़ा दी थी
मेरे नाम के पीछे ई की स्त्रीसूचक मात्रा
इस तरह मेरा नाम भी
मरता रहा शनैः शनैः
मान्य सूरज जब ढूँढा गया
जब तुम्हारे निष्कलंक माथे का
इस कड़ी का अंतिम गवाह
चाँद भी मर गया
.............................. ...............
(मरना इतना आसान कब था.....लो मैनें जातक कथाओं में ज़िंदा रखी है मरी हुई हर चीज़.......जिसे बच्चे सीखेंगे संस्कार की तरह)
---------------------संध्या
इस कड़ी में सबसे पहले संवाद मरा
फिर वो सब बातें
घर पहुँचने का लम्बा वाला रास्ता
चूड़ी के बदले लिया गया कड़ा मरा
दुपट्टे के छोर से उलझ गया वक़्त और
टांकने के बहाने लिया था जो
कुरते का बटन भी मर गया
दीवार परकैलेण्डर की पीठ का निशान
पुरानी तारीख़ पर लगा नया गोला
मनौती के पेड़ पर खुरचा
बिना हाशिये का नाम
चोरी से रखे गए सलामती के
व्रत-उपवास मरे
फिर एक दिन तुमने कहला भेजा
भिजवा दो मेरा वो एकलौता ख़त
जिसमें लिखा था छुपाकर
मेरे नाम का सिर्फ़ पहला अक्षर
अनचीन्हा सा डर रहा होगा
तभी तो तुमने बढ़ा दी थी
मेरे नाम के पीछे ई की स्त्रीसूचक मात्रा
इस तरह मेरा नाम भी
मरता रहा शनैः शनैः
मान्य सूरज जब ढूँढा गया
जब तुम्हारे निष्कलंक माथे का
इस कड़ी का अंतिम गवाह
चाँद भी मर गया
..............................
(मरना इतना आसान कब था.....लो मैनें जातक कथाओं में ज़िंदा रखी है मरी हुई हर चीज़.......जिसे बच्चे सीखेंगे संस्कार की तरह)
---------------------संध्या
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें