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नाह कोई मुखौटा नहीं पहना गया
तुम्हारे आने से हेकड़ी दिखाते पहाड़
दहक उठते हैं भट्ठी की तरह
कुछ दिन के लिए ही सही
पिघल उठता है मानो सब
लेकिन नहीं जानते ये
बुरांश के फूलों जैसे
ऊँचाई बढ़ने के साथ साथ
बदलती जायेगी रंगत तुम्हारी
-संध्या
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