आंख खोली नहीं फरेब पर उसके इस क़दर यकीन था
मर गया भीड़ में वो शख्स जो दिल से हसीन था
मिलना हुआ नहीं कभी ये वक़्त की चाल थी
अमीरों की बस्ती में चुना जिसे मौत ने एक गरीब था
फूल भी खिलने लगे मिजाज़ मौसमों का देखकर
ज़ख्मों में धंसे खंज़र पर निशान मिले उसके जो करीब था
नफरत मिली हमेशा ये काटों का नसीब है
जाने क्या बात थी एक मुझे छोड़कर वो सारी दुनिया को अज़ीज़ था
सजाए मौत मिली फिर से परिंदों को इश्क की कचहरी में
फैसला सुनाया उसी ने जो बयां से मुकर हुआ गवाह था -संध्या
मर गया भीड़ में वो शख्स जो दिल से हसीन था
मिलना हुआ नहीं कभी ये वक़्त की चाल थी
अमीरों की बस्ती में चुना जिसे मौत ने एक गरीब था
फूल भी खिलने लगे मिजाज़ मौसमों का देखकर
ज़ख्मों में धंसे खंज़र पर निशान मिले उसके जो करीब था
नफरत मिली हमेशा ये काटों का नसीब है
जाने क्या बात थी एक मुझे छोड़कर वो सारी दुनिया को अज़ीज़ था
सजाए मौत मिली फिर से परिंदों को इश्क की कचहरी में
फैसला सुनाया उसी ने जो बयां से मुकर हुआ गवाह था -संध्या
परिन्दों को सजाये मौत...
जवाब देंहटाएंआह!
भावमय शब्द संयोजन ।
जवाब देंहटाएंAmazing resource! Thank you for creating it. Keep going that way.
जवाब देंहटाएंFrom everything is canvas
nice one....
जवाब देंहटाएं