आधी रोटी पूरा चाँद
जिस एहसास से हु मैं कोसों दूर,
मुझको ये न भाता है,
बिन आहट के खिड़की से,
दबे पांव आ जाता है,
धरती हूँ; बारिश .की बूंदे तुम,
सोंधी महक ये प्रेम हमारा,
मिल जायेंगे दोनों जब,
महकेगा सारा संसार,
साथ में है अपने बस आधी रोटी पूरा चाँद.
ख्वाब ये कैसा पलकों में मेरी,
जैसे हम हैं साथ-साथ,
लेकर हाथों में हाथ,
गुज़रे पूरी चांदनी रात,
बस देखते हुए एक दूजे को,
कर लेंगे पूरी दिल की बात,
आधी रोटी हो बस पास हमारे,
और गगन में पूरा चाँद.
रिमझिम जब ये बारिश हो,
दूर कहीं तुम मुझसे हो,
झाकूंगी मैं बाहर हौले से,
आना तुम बनके ठंडी फुहार,
क्या हुआ जो?
रोटी नहीं है आज पास हमारे,
चल बाँट ले आधा-आधा चाँद.
बादल का तकिया बनाकर
, सो जायें क्यों न नील गगन में,
इतना निश्छल हो मिलन हमारा,
कि देखे संसार ये सारा,
बुनेंगे सपने मिलकर हम,
कैसी दिखती है आसमान से?
पूरी रोटी,
और पास से पूरा चाँद.
शब्दों में तुझको पिरो दूँगी,
और तस्वीर में मुझको तुम,
करेंगे फिर अदला-बदली,
इतने में रात गुजर जाएगी,
ख्वाबों से तुमको जाना होगा,
आधी रोटी संग मैं नीचे बैठी हूँ,
पूरे चाँद के साथ ऊपर तुम.
bht khoobsoorat likha hai sandhya....keep it up.!!
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