आज दूसरी बार अपने बारे में लिखने बैठी हूँ तो बड़ा कम्फर्टेबल फील कर रही हूँ. ठीक वैसे ही जैसे नयी नवेली दुल्हन को मुंह दिखाई के बाद महसूस होता है. पिछली दफा मैंने अपनी कहानी तारीख मांगते हुए छोड़ी थी. ब्रेक के बाद मेरी जिंदगी का एपिसोड शुरू हो चुका है. सब कुछ बड़ा सुहाना सा लग रहा है ,क्यों न लगे आज पहली तारीख जो मिल गयी है. इसलिए मीठा खाने का मन भी कर रहा है ,लेकिन मेरा मीठापन थोड़े दुसरे किस्म का है. जब से तारीफ का बबलवा खाया है (अगर यही ख़ुशी है तो )फूल के कुप्पा हो गयी हूँ. लेकिन मुझे पता है की ये adapted होती हैं ज्यादा दिन टिक नही पाती. इसलिए दिमाग की बत्ती पहले से ही जला के रखी है. लीजिये एक और खूबी बता दी अपनी मुझे मोटिवेशन की सख्त तलब लगती है. इसके बगैर मैं बिना पेट्रोल की बाईक हूँ .लेखन के क्षेत्र में अभी मैं मुसाफिर हूँ, मेरा कोई पता ठिकाना नही हैं. बस लिखते जाना होगा . लिखने से और आलोचनाओं से दोस्ताना रखना पड़ेगा . दोस्ताना से याद आया कि पापा आपकी लाडली बिगड़ गयी है. वैसी नही रही जैसी आप सोचते थे. सीधी -साधी रबर कि गुडिया जैसी ,अपनी रास्ट्रपति की तरह. वो सोचने लगी है,महसूस करने लगी है. आप तो समझ ही नही पाए. महसूस करना तो उसने आठवी से ही सीख लिया था . गलती आपकी भी नही है. आप पुरानी फिल्मो के पिता प्राण या प्रेम चोपड़ा ही बने रहे . बेटा होती तो पूत के पांव पलने में जरूर दीखते . आप दुनिया के सबसे अच्छे पिता है, बेटे हैं , इंसान हैं .अगर ऊपर वाले जैसी कोई चीज है ,तो आपके जैसे पापा हर किसी को मिले . लेकिन जानती हूँ की ऐसा नही हो सकता . क्योंकि कमियां और खूबियाँ हमें २ इन 1 में मिली हैं. देखिये न कितनी बुद्धू हूँ ? धर्मगुरु टाईप के लोगो की तरह बस बोलती चली जा रही हूँ. आप सब का ख्याल तक नहीं रखा . पता तो चल ही गया होगा की मैं विद्रोही भी हूँ . पारले जी का एक फ्लावर नही चलने का ये मतलब नहीं की पूरा प्रोडक्ट ही ख़राब है. मम्मी तुम हम सब के लिए ऐसे नेमत हो की न चाहते हुए भी आपका जिक्र आ ही जाता है .जैसे इंडिया - पकिस्तान के क्रिकेट मैच में advertisement .
मम्मी तुम नहीं जानती की तुम चाँद हो या आफ़ताब हो, मेरे लिए तो तुम ममता की वो शराब हो जो मोहिनी बने विष्णु की तरह राक्षसों से धोका नहीं करती, ममता के मयखाने में सभी बच्चो को बराबर दुलार मिलता है जिसे पी कर हम सभी गमो की वाट लगा देते हैं. परिचि फिल्म सही कहती है की दुलार की दावा किसी हस्पताल में नहीं मिलती. माँ तुम मेरे जीवन का वो सॉफ्टवेर हो जिसे कोई हैक नहीं कर सकता. तुम हमेशा कहा करती हो की मई पापा की तरह कुशील(जिसकी आँखों में दया न हो ) इमोशंस की अल्पन्लेबे मुझमे नहीं, लेकिन देखीए न आज ऊट को निहुरे निहुरे मैंने चुरा ही लिया. याद है जब दीदी ससुराल चली गई थी तो मुझे पहली बार कित्चें ले गई थी रोटियां बनाना सिखाने के लिए, तुमने तो बेलन से रोटियां गोल अर्ना सिखाया था लेकिन मैंने दुनिया वहीँ नाप ली थी. हिंदी फिल्मो की माँ की तरह हम तुमसे बिचड़े तो नहीं और न ही आपने हमे पालने के लिए मजदूरी की , बल्कि उस्ससे भी ज्यादा किया. स्कूल के दिनों में जब टिफन बॉक्स खोला करती थी, तो आपकी आधी जगी आधी खोई नींद भी खुल जाया करती थी. गीली रोटीओं उन्दाली जम्हाई याद आती थी . मम्मी अक्सर आज भी मई सब्जी में धनिया डालना भूल जाती हूँ जब तक तुम याद न दिलाती हो. आपने ना रहने पर खुशियाँ तो होंगी पर उन्हें गार्निश करने वाला कोई न होगा. हम सबकी आदत होती है इमोशनल अत्याचार करने की .. जो अब तक मई कर रही थी आप सब पर. मेरी कहानी में intermission हो चूका है . पहला झटका तब लगा जब देहरादून की SSB में पहले दिन ही आउट हो गई थी . हमेशा से ही आसमान में उड़ना चाहती थी लेकिन वक़्त ने किया ऐसा सितम , बूमर रहा न बबलगम. जिन्दाही तेरे साथ सफ़र करने मैंने सीख लिया है. ये मत समझ की मै हार गई, चेन पुलिंग करके मै अपनी पसंद की किसी भी रह पर धीरे से उतर जाउंगी टी टी की तरह तुझे भी पता न चलेगा की ट्रेन किसने रोकी थी. आप सब ये न समझिएगा की मेरी कहानी ख़तम होचुकी है . बताया था न की intermission हो चूका है अगली बार फिर मिलूंगी टी व् सीरियल के करक्टेर की तरह प्लास्टिक सर्जरी वाले नए चहरे के साथ.
* इस कहानी का कोई भी पत्र काल्पनिक नहीं है यदि किसी को भी इन घटनाओ या भावनाओ से कोई जुडाव महसूस होता है तो आपके कमेन्ट सहर्ष स्वीकार है.
है ज्यादा दिन टिक नही
अच्छा लिखा है जारी रहो
जवाब देंहटाएंbahut accha hai mai bhi kosis karunga
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