शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

(ये कविता मैंने पुरुष मन से लिखने की कोशिश की है आप सब भी पढ़िए तो ज़रा  और बताइए कैसी लगी)  

 मैं आखें  करके कल्पना करता हूँ 

एक आईलैंड की 

किसी योगमुद्रा में भरता हूँ 

एक लम्बा उच्छ्वास 

 तुम्हारे नर्म तलुवों से 

सटा  देता हूँ अपना पांव 

और कहता हूँ कि 

ज़िंदगी खूबसूरत है 

ठीक उसी समय तुम 

अपने नाखूनों पर नेल पेंट की

 एक नयी परत चढ़ाती हो 

और कहती हो सचमुच 

ज़िंदगी खूबसूरत है 
 ......................................................संध्या 




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