गुरुवार, 24 जनवरी 2013

आज जब मां ने फिर परबतिया की बात छेड़ी तो साधना असहज हो उठी। तेजी से अपने स्टडी रुम मेँ उठकर चली गयी। और उसकी उँगलियोँ की पोरें किताबों पर वैसे ही थिरकने लगी जैसे कोई गिटारिस्ट गिटार बजाता है। ये कोई नयी बात नहीं थी ऐसा वो अक्सर करती है। पर आज उसके मन में भावनाओँ का कुम्भ था जिसमें डुबकी लगाकर मोक्ष प्राप्त कर लेना चाहती थी।

-संभवतः लिखी जा रही कहानी से

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