गुरुवार, 24 जनवरी 2013

सुनहरे से गुलाबी हो जाता है

हरसिंगार की सबसे ऊँची फुनगी पर

नयी कोंपल सहमी हुई बाहर आती है

छोटी बहना हठ करके जब

सरसों के पीले खेत दिखाती है

जाड़े की बारिश में भीगते हुए जब

तुम्हारे शहर की चाय याद आती है

और हर बूँद तस्वीर तुम्हारी लाती है

लम्बा इँतज़ार और कुछ पल की मुलाक़ात के बाद

जब स्टेशन की भीड़ छँट जाती है

अहाते में फिर से बुलबुल की

आवाजाही बढ़ जाती है

नोटबुक की एक नज़्म जब

पतझड़ों से न डरने की हिदायत दे जाती है

तुम्हारी यादों के हस्ताक्षर से साथी

बसंत की ख़ुशबू आती है
-संध्या

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