शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

डायरी


मैंने तुम्हारे लिए
कभी कोई डायरी नहीं लिखी
इस डर से नहीं कि
कोई दूसरा न पढ़ ले
बल्कि इसलिए कि डायरी
के पन्ने भरते जाएँगे
एक के बाद एक
इस तरह कई डायरियां
भर जायेंगी
पर मेरी भावनाएं
मेरा प्रेम तो
असीमित है
कैसे समेटती उसे
चंद हर्फों और पन्नों में
शायद एक वक़्त ऐसा भी
जब शब्द कम पड़ जायें
या पन्ने पलटते पलटते ]
तुम्हारी उँगलियाँ
जवाब दें जायें 
और उसे डाल दो किसी
पुरानी अलमारी में
ख़ाली वक़्त के लिए
या फ़िर किसी अनजाने डर
कि वजह बन जाए
तुम्हारे लिए
इसलिए मैंने तुम्हारे लिए
कभी कोई डायरी नहीं लिखी
इसलिए एक दिन
बिना बताये
मैंने पी लिया था
तुम्हारी धूप का टुकड़ा
और चुराया था एक अंश
और देखो एक
जीती जागती तुम्हारी
डायरी लिख रही हूँ
जो बिलकुल तुम्हारे जैसी है
बोलती और सांसे लेती हुई....................................संध्या 










8 टिप्‍पणियां:

  1. मन के भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....

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  2. कल 25/11/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  3. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
    :-)

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  4. जागते अहसास ...सांस लेते हुए से ..बहुत खूब

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