गुरुवार, 22 नवंबर 2012

आखिरकार न्याय मिल गया-कसाब की गोपनीय मौत

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  आज जब भारत के लोग सोकर उठे होंगे तो उन्हें इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि ऐसी खबर उनका स्वागत करेगी जिसका इंतज़ार उन्हें पिछले चार साल से था। चार सालों की लम्बी कानूनी प्रक्रिया से गुजरने के बाद 26/11 मुम्बई हमलों के आरोपी कसाब को आज सुबह पुणे की यरवदा जेल में अत्यंत गोपनीय तरीके से फांसी दे दी गयी। जैसे ही यह ख़बर लोगों में फैली पूरे देश में दीवाली जैसा माहौल हो गया। लोगों ने एक दूसरे को मिठाई बांटकर एक दूसरे को बधाई देने लगे। भारत की और से पाकिस्तान को लिखित सूचना इस बात की पहले ही दे दी गयी थी। जब पाकिस्तान ने उसे लेने से मना कर दिया तो फैक्स भी किया गया। कसाब की मां को भी उसकी मौत की सूचना दी गयी थी। उसने मरने से पहले कोई इच्छा नहीं जताई लेकिन आखिऱी शब्दों में अल्लाह से मुआफी ज़रूर मांगी थी। पाकिस्तान ने उसके शव में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और पुणे की कब्रिस्तान समिति ने भी उसकी कब्र को ज़मीन नहीं दी। उसे यरवदा जेल के भीतर ही दफऩ कर दिया गया। कसाब की मौत पर सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर भी प्रातक्रिया देने वालों का ताँता लग गया। उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में सुरक्षा कारणों से हाई अलर्ट लगा दिया गया है। उसे फांसी चढ़ाने की पूरी घटना को इतना गोपनीय रखा गया कि किसी को कानोंकान भनक तक नहीं लगी। आपरेशन एक्स के इस मिशन में सत्रह ऑफिसर्स की स्पेशल टीम बनायी गयी थी। जिनमें से पंद्रह मुम्बई पुलिस के थे। जिस वक़्त कसाब मौत की तरफ बढ़ रहा था, sसिर्फ दो को छोड़कर  पंद्रह ऑफिसर्स के फोन स्विच ऑफ़ थे।  ऐंटि-टेरर सेल के चीफ राकेश मारिया और जॉइंट कमिश्नर ऑफ पुलिस देवेन भारती को ही अपने अपने सेल फोन ऑन रखने की अनुमति थी।  सेलफोन ऑन थे। शायद इस डर से की इस बात की ख़बर बाहर तक न पहुंचे। कसाब की औचक फांसी से कुछ सवाल ज़रूर उठने लगे हैं कि आखिऱ इतने बहुचर्चित मामले को अंजाम देने में इतनी गोपनीयता क्यों बरती गयी। हालाँकि सरकार की तरफ से मीडिया को दी गयी जानकारी में बताया गया है कि  गृह मंत्रालय ने 16 अक्टूबर को राष्ट्रपति से कसाब की दया याचिका ख़ारिज करने की अपील की थी। 5 नवम्बर को राष्ट्रपति ने दया याचिका ख़ारिज कर गृह मंत्रालय को लौटा दी और 7 नवंबर को गृहमंत्री सुशील शिंदे कागजात पर हस्ताक्षर करने के बाद उन्होंने 8 नवंबर को महाराष्ट्र सरकार के पास भेज दिए थे। गृहमंत्री के अनुसार 8 तारीख को ही इस बात का फैसला ले लिया गया था कि 21 नवंबर को पुणे की यरवडा जेल में कसाब को फांसी दी जाएगी। अभी कुछ दिन पहले ही मीडिया में कसाब को डेंगू होने की ख़बर आई थी। इस बात पर मीडिया और सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर जमकर खिल्ली उड़ी थी। सवाल यह भी उठ रहे हैं कि कसाब की मौत फांसी से ही हुई है या किसी दूसरी वजह से। अभी एक दिन पहले संयुक्त राष्ट्रसंघ की महासभा में भारत ने उस याचिका का प्रतिरोध किया था जिसमें फांसी की सजा को ख़त्म करने की मांग की गयी थी। शायद इसकी वजह भी यही थी। जिसे दो साल पहले ही कानून ने दोषी करार दे दिया था उसे अब तक जिंदा रखने का कोई तुक नजऱ नहीं आता था। पिछले चार सालों में सरकार ने उसपर पचास करोड़ खर्च करे। कसाब जब तक जिंदा था उसपर सियासत का खेल खेला गया और उसकी फांसी के बाद भी यह जारी है। सरकार इसे अपनी उपलब्धि बता रही है। कहीं वह भी तो अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा की राह पर नहीं चल रही जिन्होंने ओसामा बिन लादेन की मौत को चुनावी हथकंडा बनाया था। कहीं ये जल्दबाजी लोकसभा चुनाव के मद्देनजऱ तो नहीं थी। अगर वास्तव में ऐसा है तो उसे अब तक की नाकामी का ठीकरा अपने सिर लेना चाहिए।
कसाब की फांसी के बाद संसद हमले के आरोपी अजमल सईद को भी फांसी देने की मांग हर तरफ से उठने लगी है और उसकी दया याचिका को आगे भी बढ़ा दिया गया है जिससे उसके भाग्य का फैसला जल्द हो सके। पाकिस्तान ने बड़ी देर से इसपर बयान देते हुए कहा की वह हर तरह के आतंकवाद की निंदा करता है और सहयोग के लिए प्रतिबद्ध है। कसाब की फांसी से पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय नागरिक सरबजीत की मुश्किलें बढ़त गयी है। आशंका जताई जा रही है कि वह इसका बदला सरबजीत को फांसी देकर ले सकता है। मामला कुछ भी हो भारत कि न्याय प्रणाली ने पूरे विश्व में एक सन्देश दिया है।देर से ही सही  कसाब आखिऱकार अपनी नियति को प्राप्त हुआ।    
   

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