शनिवार, 24 नवंबर 2012

दुनिया पूछती है मेरी ख़ामोशी का सबब मुझसे
ज़रा सी याद तुम्हारी आई है और कोई बात नहीं

दिल में बसी तस्वीर धुंधली नज़र आती है
आँखों में उतर आई है और कोई बात नहीं

तेरी महफ़िलों में हम भी हैं आजकल
वफ़ा तुमसे हो गयी है और कोई बात नहीं

बाग़ के सब फूल चुन लिए उसके लिए
कांटे मेरे हिस्से में आये हैं और कोई बात नहीं

भीड़ में कोई उंगली तेरे जानिब न उठे
निगाह इसलिए चुरायी है और कोई बात नहीं

अंधेरों से न हो वास्ता रौशन तेरा घर रहे
दिल अपना जलाया है और कोई बात नहीं
                                                                    - संध्या

2 टिप्‍पणियां:

  1. भीड़ में कोई उंगली तेरे जानिब न उठे
    निगाह इसलिए चुरायी है और कोई बात नहीं ....

    उत्तम

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