शनिवार, 24 नवंबर 2012

चुल्लू भर कसाब बाकी है

                                            
                                                                                                                            

काहे गयो  रे कसाब। तुम तो चले गए गए बिरयानी और सत्तर बकरों की बोटी खाकर पर अपने पीछे भरा पूरा संभावनाओं का कसाब छोड़ गए। तुम्हारे चाचा बहुत तंग कर रहे हैं। उनने न तुम्हें जिंदा अपनाया न मुर्दा। और जब तुम जमीन में गड़ गए तो गड़े मुर्दे उखाड़ रहे हैं। हम इण्डिया वाले इतने भी गए गुजऱे नहीं हैं जो तुम्हारी तेरहवीं वगैरह का जुगाड़ न करा सकें।। पचास करोड़ तो ऐवें ही खर्च कर दिए। ये क्या दो जोड़ी कपड़ों के लिए सईद चाचा के पास चले गए। इससे तो अच्छा था कि बांग्लादेशी शरणार्थी बनकर पहले ही यहाँ चले आते, उधर असम में अच्छा जुगाड़ था या फिऱ हमारे किसी घोटाला योजना में शामिल हो जाते। इससे डबल फ़ायदा था। जि़ंदा भी रहते और ऊपर की कमाई होती सो अलग। तुम यूं चले जाओगे किसी ने नहीं सोचा था। विपक्ष वालों ने तो बिलकुल नहीं। तुम पिछले चार  सालों से मुद्दा थे। मुद्दा क्या था बैठने के लिए आरामदेह गद्दा थे। जिसपर बैठकर आराम से दूसरों को गरियाया जा सकता था। पर अब क्या अब तो तुम चले गए। इससे तो अच्छा था कि तुम डेंगू से मर जाते। तो उस मच्छर से अफज़ल जी के लिए भी बात चलाते। लेकिन शायद  तुम दोनों एक दूजे के लिए ही बने थे। मच्छर भी शिंदे जी टाईप का देशभक्त निकला। तुम्हारे साथ पूरी वफ़ादारी दिखाई। लेकिन अगर तुम होते तो तो डेंगू का केजरीवाल मच्छर न आता। उस देशभक्त मच्छर को कम से कम अपना फेसबुक अकाउंट बनाना चाहिए था। पुलिस तुम्हें गिरफ्तार नहीं करती।।आजकल बालासाहेब जी पर स्टेटस अपडेट देख रही है। हे मराठी मानुष तुम धन्य हो। स्वर्ग में जाते ही मोर्चा संभाल लिया। अपने पीछे सबसे पहले कसाब को ही बुलवाया। मान गए जी महाराष्ट्र में ही नहीं स्वर्ग में भी तुम्हारी ही चलती है। तुम होते तो सईद चाचा के साथ मच्छर की भी पहचान करते। कम से कम सरकार क्रेडिट तो न लेने पाती। तुम्हारे जाने से मौन मोहन जी की वाट लगी हुई है। पता नहीं कौन से वाले पिछवाड़े से गए की सोनिया बहू जी को भी न पता चला। ये ऑपरेशन एक्स नाम का गोपन वाला मामला बड़ा झाम कर रहा। तुम इतनी मंहगाई में क्यूँ गए। खुद तो बिरयानी उड़ाते रहे चार साल तक।मानगो पीपुल के दिल और जेब से पूछो एक के बाद एक दीवाली मनाने में कितना खर्च आता है।और महामहिम जी पहले वाली जॉब में रहते आपने ईमानदारी नहीं दिखाई। जब कसाब की फाईल पास आई तब जाना मंहगाई क्या होती है। कसाब को निपटने के लिए ही तो प्रमोशन नहीं हुआ था आपका। ममता दीदी को भी नाराज़ कर दिया मौन मोहन जी को न सही ममता दीदी को तो बताना चाहिए था। कसाब जितना सबका था उतना दीदी का भी था। हो सकता था वो कुछ ज्यादा सस्ते में निपटा देती तुम्हें। बस नहीं था तो पाकिस्तान का। कसाब तुम्हें ऐसे नहीं जाना चाहिए था। 





                                                                                                                            -संध्या यादव




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