वो अकेला नहीं जो रूठा था ज़िन्दगी से
फिर हड़ताल धडकनों की वक़्त पर है और मुफ़ीद भी
तमाम उम्र सीधी राह चलने का सिला कुछ तो नहीं
जब तिकड़मी बना तो शोहरत मिली और साथ उसका भी
ढूंढ रहा था रेत में अजनबी क़दमों के निशां कब से
जब थक कर गिरा तो पास दरिया था और समंदर भी
कैफ़ियत तय हो गयी जब से इश्क की बाज़ार में
दर्द जो उठा है सीने में अलग है और अजीब भी
ज़ख्म मेरे जब रिसने लगे नज़्म बनकर
दुनिया ने कहा वो बावला है और रक़ीब भी
तलवारें खिंच गयी जिस फ़कीर की मय्यत पर
वो हिन्दू भी था और मुसलमां भी
किसी की यादों को शिद्दत से प्यार करना
ये हुनर है की वो भीड़ में है और तन्हा भी -संध्या
फिर हड़ताल धडकनों की वक़्त पर है और मुफ़ीद भी
तमाम उम्र सीधी राह चलने का सिला कुछ तो नहीं
जब तिकड़मी बना तो शोहरत मिली और साथ उसका भी
ढूंढ रहा था रेत में अजनबी क़दमों के निशां कब से
जब थक कर गिरा तो पास दरिया था और समंदर भी
कैफ़ियत तय हो गयी जब से इश्क की बाज़ार में
दर्द जो उठा है सीने में अलग है और अजीब भी
ज़ख्म मेरे जब रिसने लगे नज़्म बनकर
दुनिया ने कहा वो बावला है और रक़ीब भी
तलवारें खिंच गयी जिस फ़कीर की मय्यत पर
वो हिन्दू भी था और मुसलमां भी
किसी की यादों को शिद्दत से प्यार करना
ये हुनर है की वो भीड़ में है और तन्हा भी -संध्या
ढूंढ रहा था रेत में अजनबी क़दमों के निशां कब से
जवाब देंहटाएंजब थक कर गिरा तो पास दरिया था और समंदर भी
बहुत खूब संध्या जी।
सादर
किसी की यादों को शिद्दत से प्यार करना
जवाब देंहटाएंये हुनर है की वो भीड़ में है और तन्हा भी
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ।