मंगलवार, 15 नवंबर 2011

तमाशा जारी है...

एक विज्ञापन में बच्ची अपने पापा से कार की मांग करती है.पापा उसे बैंक तक ले जाते हैं और बताते हैं कि  कार उसे बैंक देगा. यानि की अब पापा की जगह बैंक ने ले ली है.ये विज्ञापनों का मायाजाल ही है जो हमारे खाने-पीने और पहनने से लेकर रिश्तों तक कि नयी परिभाषा गढ़ रहा है.विज्ञापनों ने भारतीय रसोई में घुसपैठ करके मैगी संस्कृति की नयी शुरुआत काफी पहले कर दी थी.हम वही देखते और सोचते हैं जो विज्ञापन हमें दिखाना चाहते हैं.और मज़े की बात यह है कि ये विज्ञापन कम्पनियाँ हमारी जेबें ढीली करके अच्छा मुनाफा कमा रही हैं.सिर्फ यही नहीं ये विज्ञापन हमारी मानसिकता में थोड़ा ही सही बदलाव ला रहे हैं.एक दूरसंचार कंपनी के नए विज्ञापन को ही ले लीजिये जो ग्राहकों को थोड़े में ही ज्यादा बात की गारंटी डरता है.हम भारतीयों की मानसिकता हमेशा से ही थोड़ा है थोड़े की ज़रूरत वाली रही है.अगर आने वाले दिनों में हम भी ज्यादा की चाहत रखने लगें तो हैरानी नहीं होनी चाहिए.ये अपने शिकार (यहाँ ग्राहक को शिकार  कहना ही ज्यादा उपयुक्त होगा)को बड़ी सावधानी से पहचानते हैं और फिर ऐड कम्पनियाँ अपने तरकश के सारे तीर  छोड़ देती हैं ग्राहकों को रिझाने के लिए.ये इन विज्ञापनों का ही कमाल होता है की ग्राहक को रिन सफेदी के दाग भी अच्छे लगने लगते हैं. रिन सफेदी का ही एक और विज्ञापन है जो हमें चमकते कपड़ों के दम पर सिर उठाकर जीना सिखाता है. लेकिन इसे बनाने वाला रचनात्मक दिमाग शायद ये भूल जाता है की जिस देश के लोगों को एक वक़्त की रोटी भी नसीब नहीं वो महंगा सर्फ़ अपनी फटी धोती को धुलने के लिए कहाँ से लायेंगे. ये विज्ञापनी महिमा है जिसमें ग्राहक फंसता चला जाता है. हमारे ज़हन में ये दो सेकेंड के विज्ञापन इतनी बार ठोंके जाते हैं कि हमें ठंडा मतलब कोका कोला और वनस्पति घी मतलब डालडा ही समझ आता है. 
                                                                     विज्ञापनों  की दुनिया कुछ नए प्रयोग भी दिखाती है.रचनात्मकता का ऐसा पुट जो सास बहु टाइप्स टी.वी. सीरिअल्स से उकता चुके हमारे मन को मन को सुकून देते हैं.ज़रा याद कीजिये वोडाफोन के वो जूजू वाले ऐड जो बिना कुछ कहे कितना कुछ कहकर दर्शकों को बांध लिया करते थे.और भ्रष्टाचार पर तीखे व्यंग करते टाटा टी के विज्ञापन जो खिलने नहीं पिलाने की बात करते हैं.पप्पू के पास होने की बात हो या ज़बान पर ताला लगाने वाले सेंटर फ्रेश की इन विज्ञापनों ने एक नया चलन शुरू किया जिसका मकसद सिर्फ प्रोडक्ट बेचना भर नहीं रह जाता.आईडिया के विज्ञापन जो  खुद की सेवाएं बेचने के साथ साथ अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों का भी बखूबी वहन कर रहे हैं. फिर वो चाहे कागज की बर्बादी रोककर पेड़ बचने की बात हो या फिर सही उम्मीदवार को वोट देने की बात  हो.ये सबको एक तराजू में तोलता है और कहता है की सब अपने नंबर से जाने जायेंगे.समानता की ऐसी तस्वीर रखता है जिससे हमारा समाज जाने कितने सालों से लड़ता रहा है.लेकिन बात फिर वहीँ आकर टिक जाती है की विज्ञापनों की दखलंदाज़ी हमारे जीवन में क्या इस हद तक होनी चाहिए? अगर हम टी.वी. और अख़बारों में ख़बरों व विज्ञापनों के अनुपात पर नज़र डालें तो बजारुपने की सारी कवायद समझ आ जाती है.ख़बरों और विज्ञापनों  का 60/40 वाला अनुपात 40/60 में बदल गया है.साफ़ है अखबार विज्ञापनों के लिया ही हम खरीद रहे ख़बरों के लिए नहीं. ये किस्सा उन समाचारपत्रों का भी है जो सबसे अच्छे सबसे ज्यादा बिकने का दावा करते है.दुनिया भर के दामन को साफ़ करने वाला मीडिया अपने दामन की छीटों को किस साबुन से साफ़ करेगा.
                                                            लेकिन कुछ भी हो विज्ञापनों की इस सबसे ज्यादा बिकने की होड़ में फायदा कहीं न कहीं ग्राहकों को भी हो रहा है. कम कीमत में ज्यादा विकल्प उपभोक्ता के पास बने हुए हैं.तो कैडबरी के विज्ञापन की तरह उसे इस बात की चिंता नहीं सताती की अज महीने की कौन सी तारीख है.हर दिन सुहाना बनाने के लिए उपभोक्ता तैयार है. 



8 टिप्‍पणियां:

  1. sandhya....accha lekh.social advertising hamesha se market me hai....aur iska hona jaruri bhi hai...

    जवाब देंहटाएं
  2. Sach hai ji...

    ye hamari sanskriti ka bhi dohan kar rahe hain.

    ek col ki add.." apne girlfriend ke samne dusre ko line kese mare"

    ek dusare add... "me ek ladki ke kar ke age ek ladka hi pichhe diggi me dusra hi jo age wale ke jane ke bad niklta hi aur dono khus ho ke chal dete hain"

    ab apki bat vigyapan hamari dimag par asar chhodate hain.

    जवाब देंहटाएं
  3. कल 25/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  4. सटीक बात कही है आपने ..आभार

    जवाब देंहटाएं