सागर सी गहरी प्रीत लिखूं
ऊंचे पर्वत की ऊँगली थामे
बहती नदियों का
जीवन संगीत लिखूं
पथ से भटका राही हूँ
यदि जंगल तुम्हें बियाबान लिखूं?
प्रातः की नयी शुरुआत लिखूं
या हरी घास पर आबशार लिखूं
प्रकृति के हर रूप में तुम
यदि अमावस की
तुम्हें काली रात लिखूं?
हाथों के कंगन की
खनकती आवाज़ लिखूं
या दर्पण में अपना
सोलह श्रृंगार लिखूं
सामने तुम हो सोचकर ये
यदि गालों पर तुम्हें
सुर्ख़ लाल लिखूं?
घूंघट की तुमको ओट लिखूं
या रेत पर क़दमों के निशान लिखूं
मृग-मरीचिका से लगते हो
यदि तपते मरू में
तुम्हें नखलिस्तान लिखूं?
मकड़ी के जाले सी लिपटी
यादों का तुम्हें जंजाल लिखूं
या टेबल पर पड़ी पुरानी डायरी में
रखा सूखा गुलाब लिखूं
यदि ग़ुरबत के दिनों की
अधजली रोटी का
तुम्हें स्वाद लिखूं?
जीवन की तुमको आस लिखूं
या सपनों का स्वप्निल
आभास लिखूं
देखो विस्मृत न होना तुम
यदि मरघट का तुम्हें
विलाप लिखूं ? -संध्या
बहुत गजब का लिखती हैं आप।
जवाब देंहटाएंविजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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कल 07/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
bht acha likha hai...! Laajawab!
जवाब देंहटाएंजीवन की तुमको आस लिखूं
जवाब देंहटाएंया सपनों का स्वप्निल
आभास लिखूं
देखो विस्मृत न होना तुम
यदि मरघट का तुम्हें
विलाप लिखूं ? बहुत ही खुबसूरत और प्यारी रचना......
जो भी लिखना हो ... लिखो
जवाब देंहटाएंजादू है एहसासों में
जादू है शब्दों में
जादू ही जादू है ........
बहुत खूब....सुन्दर अहसास....
जवाब देंहटाएंजीवन की तुमको आस लिखूं
जवाब देंहटाएंया सपनों का स्वप्निल
आभास लिखूं ....
बहुत सुन्दर लिखा आपने
bahut khubsoorat prastuti
जवाब देंहटाएंजीवन की तुमको आस लिखूं
जवाब देंहटाएंया सपनों का स्वप्निल
आभास लिखूं
देखो विस्मृत न होना तुम
यदि मरघट का तुम्हें
विलाप लिखूं ?
वाह ...बहुत खूब ।
ap sabhi ka shukriya dil se..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा है आपने...
जवाब देंहटाएंसादर बधाई...
बहुत खूब......
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