शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

तुमने कुछ भी तो नहीं कहा था .....

दिन भर तुमने कुछ नहीं कहा
पर पूरी रात सुना मैंने
सवाल जो नहीं पूछे
उनका भी जवाब दिया
और तुम्हारे  आस पास की
हर  चीज़ को महसूस किया
सुनी थी क्या तुमने भी
कुत्ते के भौंकने की आवाज़
तुम्हारी गली के
पेड़ पर बैठी कोयल
कूक रही थी 
बच्चे झगड़ रहे थे
और अचानक तभी....
मेरे  नथुनों ने सूंघ ली थी
तुम्हारे कमरे में
दूध के उबलने की महक
किसी ने कुण्डी खटखटायी
और तुमने आवाज़  लगायी थी
कौन...........
कविता  जो तुमने कही थी
उसके हर शब्द को 
जिया मैंने
कहा करते हो हमेशा
मैं टुकड़ों में बंटा हुआ हूँ
बहुतों में
मैंने बड़े जतन से
सहेज लिया है
हर उस टुकड़े को
इस उम्मीद के साथ
कभी हल कर पाऊँगी
इस पहेली को
ये सब मैंने सुना था
जबकि 
तुमने कुछ भी तो नहीं कहा था

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