शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

ये मीडिया वीडिया क्या है.............

अभी कल की ही बात ही कि मेरे पड़ोसी सवेरे-सवेरे ही मेरे घर आ धमके. अब इतनी मंहगाई में अतिथि बिलकुल अमेरिका सरीखा ही लगता है कि कब, कहाँ, किस वक़्त आ धमके और चाय-पानी पर हक जमा दे. पड़ोसी  महोदय ने बड़ी रपटीली निगाहों से पूछा- और..चाय-वाय पी जा रही है.ऐसा लगा  कि मानो अमेरिकी सील कमांडो ने मिसाइल दाग दी हो जिसे  न उगला जा रहा था और न निगला.बिल्कुल पी.एम. वाली स्टाइल में हामी भरी. अब वो थे कि बोलते ही चले जा  रहे थे और हम नाटो देशों की तरह उनके पीछे-पीछे हाँ में हाँ मिला रहे थे.उनका बात  करने  का अंदाज़ ऐसा कि हमारे बड़े-बड़े न्यूज़ एंकर  भी मात खा जायें.पड़ोसी महोदय आगे बोले- और बताएं कैसे  हैं आप? हमने सोचा कि आपसे बातें-वातें हो जाएं. बच्चे-वच्चे कैसे हैं? और भाभी जी भी अच्छी हैं. वो कुछ बोलते कि हमने पहले ही तपाक से ज़वाब  देते  हुए कहा. एक के बाद एक सवालों कि मिसाइल दागे जा  रहे थे. ऐसा लग रहा था कि जैसे पाकिस्तान भी वही हों और इण्डिया भी वही हों.ज़वाब मुझसे ही मांगे जा रहे थे जैसे मैं कोई विकिलीक्स हूँ जो क्लिक करते ही दुनिया भर में हल्ला हो जायेगा.सरकारी स्कूल के मास्टर की तरह उन्होंने मुझसे पूछा- गरीब? ज़वाब था किसान. हत्या? सचान. इसके बाद तो शब्दार्थ का ऐसा शास्त्रार्थ चला कि पडोसी जी कालिदास बन गए और हम विद्योत्मा कि तरह ताकते रहे.आत्महत्या? जो रखता है ईमान. ढोंगियों के बीच संत?निगमानंद. नए पैकेट में माल पुराना? रामदेव का योग-ख़जाना. मांगों को मनवाना? वही अनशन का ढोंग पुराना. अब आगे वाही हुआ जो अक्सर हमारी भारतीय बहसों में अक्सर हुआ करता है. बात शुरू रामायण से हुयी थी और पहुँच महाभारत तक गयी. अब  वे हर किसी की बखिया उधेड़ कर रखने वाले मीडिया पर  आ टिके थे. जैसे ही उन्होंने मीडिया की पूँछ  पकड़नी चाही मैंने झट से जवाब दे डाला- महोदय जी अब तक जितने शब्द अपने पूछे वो मीडिया था और अर्थ वीडिया.फिर हल्के से हम वीडिया की स्टाइल में अपना बोरिया-बिस्तर समेत कर नौ दो ग्यारह हो लिए.    
        


   

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