बुधवार, 29 जून 2011

                                                           पैसा बोलता है..............        
आज से कुछ साल पहले तक घर के सभी फैसलों में  बड़े -बूढों की सलाह अहम् होती थी पर वक़्त बदल चुका है. खाने के नमक से लेकर चार धाम कि यात्रा तक कि जिम्मेदारी इन विज्ञापनों पर ही है.अभी हाल ही में झंडू बाम के  एक विज्ञापन में मुन्नी अपनी पतली कमर लचकाते हुए इसके साथ चार धाम की यात्रा की बात करती है. पप्पू इस बार पास होगा कि नहीं इस बात से लेकर हमारे समाज कि सबसे  बड़ी हकीक़त कि पैसा बोलता है;अनजाने में ही सही एक कड़वा सच बड़ी सफाई से कहा है. दरअसल विज्ञापन असली और नकली नोटों में फर्क बताता है. शुरुआत कुछ इस तरह से है..........नज़र जो  तेज़ रखते  है वो सबकुछ ताड़ लेते है,पैसे की भाषा सुनिए क्योंकि पैसा  बोलता है. है न कितनी मारू बात? पहली लाइन जैसे सुनी गांठ  बांध ली मैंने. इन स्कूली गुरुओं ने तमाम गुरुमंत्र दिए अब तक पढाई के, सफलता के,और न जाने  कौन-कौन से दुनिया भर के आधे  से ज्यादा तो याद भी नहीं.  
                                                                                                     बात तो पूरे बत्तीस आने सच है.अब देखिये  न नेता लोग कैसे  ताड़ लेते  हैं कि किस डील में कितने वारे-न्यारे किये जा सकते हैं.बोफोर्स हो या २जी हो; आखिर ताड़ा तो ज़बरदस्त तरीके  से होगा तभी तो इतना बड़ा गेम खेला होगा.रही बात पैसे की भाषा समझने की तो ये कोई पुलिस वालों से सीखे, सरकारी दफ्तरों में बैठे बाबुओं से पूछे कि किस रंग कि पत्ती दिखाने पर कितना काम होता है. विज्ञापन आगे बोलता है .............ये मेरी नब्ज़ है देखो,इसे परखने की आदत बनालो. बस यहीं थोड़ा चूक गए. ये भी भला कोई बताने की बात  है क्या. अरे ये तो हमारी खून में घुल चुका है.  चाहे  तो रक्त परीक्षण के लिए भेज कर देख लो. श्वेत और लाल रुधिर कनिका और भी कई चीज़ें पकड़ में आ जायेंगी लेकिन पैसा की लत न पकड़ में आयेगी.हमारी अदालतें तो पुण्य भूमि है इसकी जहाँ गवाह इसी नब्ज से तय होते हैं.कितनी ज़बरदस्त बात कहता है ये आगे...............न पहिये  हैं न पंख है पैसा चलता चलता रहता है. सच्ची! .चलना तो कोई पैसे से ही सीखे. ये और मैं तो कहती हूँ की बच्चों को भी चलना इसी से सीखना चाहिए बड़े -बड़े मंत्रालयों, देशों से होते हुए ये कुछ ही समय  में स्विट्जरलैंड पहुँच जायेंगे.और आखिर में पूरे विज्ञापन का रस यह है कि...........मेरी रंगत तो देखो.क्योंकि पैसा बोलता है. इसे कहते है बिलकुल बमफोड़ू बात. बस रंगत जन लिए  तो  जानो पूरा गीता का ज्ञान पा लिए. अरे वही रंगत जिसका बोलबाला है.जिसकी रंगत और संगत दोनों ही वर्तमान  में सबसे प्रचलित हैं. जो सबसे ज्यादा पूजे जाने वाले इष्ट हैं. वही घनश्याम. मतलब ये कि काले रंग का बोल-बाला है.पैसा तो बस धनस्याम ही हैं बाकि तो कागज की रद्दी है. इसलिए मित्रों पैसे कि भाषा सुनिए....................        




   

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