शुक्रवार, 20 मई 2011

                                                        सड़क सुरक्षा-देखभाल से बेहतर बचाव 
महज कुछ साल पहले जब हमारे देश की सड़कों पार दुनिया की सबसे सस्ती कार नैनो दौड़ी तो पूरा विश्व भारतीय कौशल को देख अपने दांतों तले ऊँगली दबाने को मजबूर हो गया था और इसके साथ ही यातायात सम्बन्धी परेशनियों से जुड़ा एक और प्रश्न हमारे सामने खड़ा हो गया.हमारे यहाँ शाम के वक़्त हतायात रेंगते हुए चलता हाई. जाम की स्थिति आ जाती है. कभी -कभी तो इस वज़ह से कितने लोग अपने गंतव्य तक नहीं पहुँच पते, मरीज दवा के अभाव में दम तोड़  देते हैं और कभी तेज़ रफ़्तार के कारन लोग जानलेवा  सड़क दुर्घटनाओं के शिकार हो जाते हैं.बात सड़क सुरक्षा और दुर्घटनाओं के बढ़ते ग्राफ की  है. हमारे देश में सड़क दुर्घटनाओं का आईना बहुत चौंका देने वाला है. सन २००७ के मुताबिक सड़क हादसों में एक लाख तीस हज़ार लोगों ने सफ़र करते हुए जान गंवाई. आशय यह की प्रतिदिन २५६ लोग मोटर वाहनों की तेज़ रफ़्तार  के शिकार हुए.और इससे कई गुना अधिक लोग आजीवन विकलांगता की खायी में धकेल दिए गए. यानी की जो देश विकाव्स के उड़न खटोले पर बैठकर चाँद के आसमान में यात्रा का आहा है, उस देश की सडकें आज भी मौत के सार से कम खतरनाक नहीं हैं. हमने भले ही चाँद पर पानी खोज निकाला है लेकिन यातायात और सड़क सुरक्षा के मामले में हमारी योजनाये पानी मांगती नज़र आती हैं. 
                                                                                                    सड़को और उनकी देखभाल का मुद्दा प्रशासन के माथे मढने का मुद्दा नहीं है.यह जागरूकता और प्राथमिकताओं का मुद्दा है या यूँ कह ले की यह्जग्रुक्ताओं और प्राथमिकताओं की जिम्मेदारी है. हमारे देश में सड़क नियमों के प्रति जागरुक का अभाव है. व् सड़क नियमों का पालन हमारे लिए मजबूरी है. अज भी पचास फ़ीसदी लोगों की हेलमेट लगाने के पीछे की मानसिकता चालान से बचने की है. इस्लियेसदकों पर ऐसी बाईक दौड़ती नज़र आएँगी जिन पर हेलमेट सिर्फ खास मौकों के लिए टंगे नज़र आएंगे. वहीँ विदेशों में सड़क नियमों का कठोरता से पालन हटा है. शायद यही कारन है की हमारे यहाँ प्रति दस वहां मृत्यु दर १४ फीसद है और उनके यहाँ ये आंकड़ा २ फीसद से भी कम हाई हमारे देश की सड़कें ९० फीसद से अधिक सावरियां और ६५ प्रतिशत माल ढोती हैं .सादे इतनी अधिक उपयोगी होने के बाद भी उनकी हालत आंख के अंधे नाम नाम नयनसुख वाली ही है. सड़क हडसन को अंजाम तक पहुँचाने में अन्य कारणों की भी भूमिका होती है . मसलन सड़कों की चौडाई कम होना, दिवाईडर सही स्थिति मे न होना , सड़कों पर मेनहोल खुले पड़े रहना और जगह -जगह गड्ढे होना. कई मामलों में यह भी देखने को मिला है की ज़्यादातर हादसों की वजह गलत ओवरटेकिंग होती है. अन २००६ में मुम्बई -पुणे  एक्सप्रेस वे पर हुयी दुर्घटनाओं नी साथ से भी अधिक लगों की जानें ली हैं. यानि की ज़्यादातर लोगन को सड़क नियमो की कोई जानकारी ही नहीं होती.
                                                                 यद्यपि कई बार व्यस्त चौराहों पर ट्रैफिक सिपाही न होने की वजह से भी हादसे होते  हैं. इसलिए चाहिए की लोग वाहन चलते समय रफ़्तार पर नियंत्रण रखें. और वाहनों मे उच्च     तकनीक का इस्तेमाल करे. जैसे की- एयर-बैग्स ,एंटी ब्रेकिंग सिस्टम और बेहतर सस्पेंशन .इन सबका इस्तेमाल आपके सफ़र को सुहाना बनाने के साथ देश का ज़िम्मेदार नागरिक बनाने  की ओर भी अग्रसर करेंगी..              

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