गुरुवार, 3 मार्च 2011

media mujhe sapne me dikhta hai....

लड़कियों के बारे में अलग किस्म के लेख लिखने वाला इन्सान अज कुछ असहज महसूस कर रहा है. हमेशा कुछ न कुछ बोलते रहना ही उनकी पहचान बन गयी है . लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिए उन्हें ज्यादा जुगत नहीं लगनी पड़ती. उनका देशप्रेम कुछ -कुछ नाथूराम गोडसे जैसा है. इन्हें डिपार्टमेंट की राखी सावंत कहना ज्यादा सही रहेगा. आईये जानते हैं कि क्या कहा ऍम.जे. ऍम. सी. के छात्र अर्चित ने-  
 
बैठिये. 
धूप बहुत है यार. कला हो जाऊंगा .(पास के एक पौधे से फूल तोड़ते हैं, देते हुए कहते हैं कि अब अच्छा लिखना.) 
कैसा लग रहा है एक लड़की को इंटरव्यू देते हुए? 
बहुत अच्छा. पहली बार किसी लड़की ने मेरा इंटरव्यू लिया है. 
और. 
दिल कि ख़ुशी छिपाए नहीं छिप रही. (अपनी जींस पर लगी धूल झाड़ते हैं.)
अर्चित के पीछे पंडित क्यूँ?
बस ऐसे ही. कोई खास वजह नहीं. 
अर्चित पंडित का कोई दूसरा नाम.
अच्चू .
कौन बुला सकता है इस नाम से? 
सिर्फ घर वाले और कोई नहीं.
अपने बारे में कुछ खास बताना चाहेंगे. 
ऐसा कुछ खास नहीं मेरे अन्दर. लेकिन लोग कहते हैं कि मझमे अहम् नहीं. मेरी कोशिश ये रहती है कि अगर कोई दो पल के लिए भी मेरे साथ है तो मुस्कुराता रहे. किसी के होठों पर मेरी वज़ह से मुस्कराहट आती है तो मुझसे ज्यादा खुशनसीब कोई नहीं. 
ये रियल अर्चित है. 
शायद ये बहुत बदला हुआ अर्चित है. आज से दो साल पहले जो था वो बहुत बिगड़ा हुआ था. मैं गलत संगत में पद गया था.  लेकिन मेरे पापा ने मुझे उस कीचड़ से बाहर निकला. अब कोशिश यही है कि गलत कामों में किसी का साथ न दूं.
कैसे गलत काम?
मैं लडाई झगडे वाले कामों में पड़ गया था.
किस तरह कि गलत संगत? 
कुछ दोस्त ऐसे थे जो बुरे थे और कुछ बहुत बुरे. कहते हैं कि गेहूं के साथ घुन भी पिसता है,लेकिन परिवार के नाम कि वज़ह से मैं फंसा नहीं.
आगे ऐसे किसी काम में फंसे तो परिवार के दम पे बाहर निकलेंगे या अपने दम पर.
अब ऐसे काम करने का सवाल ही नहीं. लोग ऐसा पेट के लिए करते हैं ,पैसे के लिए नहीं.
आप किसलिए करेंगे?
परिस्थितियों के कारण.
अगर फिर भी गलत संगत में पड़े तो.
मेरे अन्दर सच्चाई होगी तो मैं अपने दम पर बाहर निकलूंगा. 
परिवार के बारे में. 
joint family है. लड़कियां (बीच में सुधार करते हुए )मेरा मतलब है कि बहने कम हैं. ये शायद अच्छा भी है. ऊपर वाले कि दया है कि सब मिल-जुल कर रहते हैं. एक दूसरे के लिए कुछ करने कि इच्छा हमें जोड़े हुए है. हम सगे दो भाई हैं. मेरे भाई का नाम राहुल है.
बहने कम हैं ये अच्छा क्यों है?
(जवाब देने से इंकार कर दिया.)
लड़कियों के मामले में काफ़ी फ्रैंक  हैं.
ऐसा नहीं है. शुरू में तो किसी से बात तक नहीं करता था. बोलूँ चाहे जो लेकिन दिल में खोट नहीं. मैं लड़कियों के पीछे भागने वाला नहीं. भगवान् कि दया से मेरे पास सब कुछ है.
भगवन कि दया से लड़की भी .
नहीं- नहीं अभी तलाश है. कमबख्त बजरंगबली का भक्त होने कि यही विडम्बना है.
ऊपर वाले पे विश्वास.
बहुत ज्यादा.
असल ज़िन्दगी में भी इतने ही फ्रैंक. 
बिलकुल. दोस्तों के साथ राहों या घर में इतनी ही बेबाकी से बात करता हूँ. ऐसा नहीं कि सीरियस नहीं रहता . वक्त हिसाब से.
जर्नलिज्म और अर्चित.
शायद मेरा लक्ष्य यही है. मैं मीडिया केद्वारा ज़माने के सामने खुद को साबित करना चाहता हूँ. सुभाष चन्द्र बोस जी ने कहा था कि जो चीज़ पाना चाहते हो जब वो सपने में दिखने लगे तो समझो कि प् लोगे . मीडिया मुझे सपने में दिखता है.
आपकी कोई ऐसी क्वालिटी जो मीडिया कि फील्ड में आपको जमा देगी .
शायद ये clear नहीं है . लेकिन जो भी करूंगा औरो  से हटकर .वैसे मैं सीरियस मूड वाले व्यक्ति को भी हंसा सकता हूँ.
खतरों का खिलाडी.
मेरे पे बिलकुल सही बैठता है. घर में भी माहौल है. घर के बाहर उससे भी ज्यादा. दोस्तों का साथ देना हो तो किसी भी हद तक जा सकता हूँ. 
किसी भी हद तक मतलब.
 साम, दाम, दंड , भेद . जो भी बन पड़े.
कुछ दिन पहले तो संदिग्ध लोगों को देखकर दर गए थे.
वो दर मेरे लिए नहीं था, मेरे साथ वाले के लिए था.
फ़र्ज़ कीजिए ऐसी कोई घटना घट जाये जिसकी कल्पना न की हो.
मेरे साथ ऐसा कई बार हो भी चुका है. जब मेरी मम्मी आग में जल गयी थी तो मैं उन्हें मौत के मुंह से निकल लाया.
चोर बाजार में क्या खरीदेंगे? 
बनिया दिमाग लगाकर कोई ज़रूरी चीज़ खरीदूंगा. ऐसा करता भी हूँ.
बनिया दिमाग..
जैसे की दूसरों को को बेवकूफ बनाकर, कम दाम में खरीदकर ज्यादा में बेंचना.
अर्चित पंडित की जगह मियाँ होते तो ?
(ओफ़ फोह ये बहुत भयंकर है.) ये बहुत खतरनाक सवाल है. ज्यादा नहीं बोलूँगा . मैं खुशनसीब हूँ की मैं पंडित ही हूँ, मुझे गर्व है.
बारहवीं तक पढने में  कैसे थे?
सही बताऊँ तो दसवीं तक अच्छा था. बारहवीं तक आते -आते गलत द्प्स्तों का साथ कहें या नासमझी की वजह से बिगड़ गया था. लेकिन अंततः मान के लाडले ने सही राह पकड़ी .
और  पापा का लाडला..
पापा का भी.
hobbies क्या  हैं? 
कई ,लेकिन क्रिकेट मेरे रोम-रोम में बसा है.जिसकी वजह से दसवीं के बोर्ड पेपर में आधे घंटे लेट पहुंचा .
सुना है की क्रिकेट मैच के लिए हवन कराते हैं.
हाँ, फाईनल में फिर कराऊंगा.
किताबे कितनी पढ़ी?
बिलकुल नहीं पढ़ी. सिर्फ चेहरे पढ़े हैं. कोशिश है कि सर और दोस्तों कि मदद से पढूं.(बीच में फिर टोकते हैं बढ़िया लिखना)
ऐसी कोई किताब जिसे पढने कि ख्वाहिश?
मुझे किताबों के नाम ही नहीं याद. बहुत मुश्किल सवाल है. पढाई-लिखाई के बारे में कुछ मत पूछो.
पिछले दिनों तसलीमा की "किताब औरत का कोई देश नहीं " पढने को मांगी थी , वज़ह कहीं ये तो नहीं कि औरतों पर है .
नहीं ऐसी कोई  वज़ह नहीं. सिर्फ पढना चाहता था?
जिंदगी का फ़लसफ़ा.
(फ़लसफ़ा का मतलब समझाना पड़ा.) खुश रहो और दूसरों को भी खुश रखो. 
समाज से कोई शिकायत. 
ऐसी तो कोई शिकायत नहीं. (बीच में टोकते हैं, काटो -काटो फिर से सवाल पूछो) कुछ भी आँख बंद करके न सहा जाये . हमें आवाज़ उठानी होगी.
जर्नलिज्म नहीं करते तो क्या करते .
bussiness करता.
कैसा bussiness ?
खानदानी.थोकविक्रेता, पटाखे,किराने का.
लिखते समय क्या सोचकर लिखते हैं
सिर्फ ये सोचता हूँ कि जो लिखों उस पर लोगों को हसीं आये. गंभीर भी लिखूंगा तो दिल को छू लेने वाला. कुछ लोग निगेटिव कमेन्ट देते हैं लेकिन बुरा नहीं मानता. जिस मकसद से लिखता हूँ बस वो पूरा होना चाहिए.
जिंदगी का यादगार पल.
अभी टिक कोई नहीं. चाहता हूँ कि देश के लिए कुछ कर सकूं .
आपके लिए देशप्रेम .
देश के लिए किसी भी हद तक कुछ भी कर जाना .अगर मुझे देश और parents के बीच में एक को चुनना हो तो देश को चुनुँगा.
ब्लॉग पर लड़कियों पर केन्द्रित लेख.
शाम को जब सभी दोस्त इकट्ठा होते हैं तो जिस मुद्दे पर सबसे ज्यादा बात होती है वो है लड़की. हम पूरे दिन भर इस पर बोल सकते हैं.लेकिन ये सिर्फ अर्चित कि सोच नहीं ज़माने कि भी है.
ऐसे कोई बात जो आपके बारे में छुपी हुई है?
शायद जिसे कई नहीं जनता उसे राज़ ही रहने दिया जाये.
फिर भी .
नहीं.
ऐसा एक दिन जब कुछ भी करने की छूट हो.
(इस सवाल पर काफ़ी कन्फ्यूज हैं. साला राज़ ही तो अपनी मर्ज़ी करता हूँ. बहुत सोचने के बाद ) bollywood का शहंशाह बनूँगा. नहीं -नहीं मैडम तुसाद में पुतला.
अपनी शादी में नाचेंगे?
पहली बात तो मैं बहुत शरमाउंगा. लेकिन अपनी शादी में दुल्हन के साथ बैठने का क्षण आनंदनीय है. ये बहुत अलग अहसास है. नज़रें मिलाने में शर्म आयेगी. अगर किसी ने जोर दिया तो अपनी संगिनी के साथ जाऊँगा.(दांतों तले ऊँगली दबाकर शरमाते हैं.)
 
(एक प्रश्न विदायी का भी जोड़ो खुद ही कहते हैं .)
 मुझे सबसे ज्यादा दर विदाई से ही लगता है. दुल्हन के साथ- साथ घर वाले भी रोते हैं. मुझे भी आंसू आते हैं. जब मेरी वो रोयेगी तो मैं उसे चुप कराऊंगा .और उसे एक गाना भी सुनाऊंगा. तुम जो आये जिंदगी में तो बात बन गयी.
लव मैरिज या अरेंज .
deside नहीं. लव मैरिज भी हो सकती है.
आखिरी सवाल इंटरव्यू देते समय कैसा महसूस हो रहा था.
अच्छा लगा . ऐसा लगा की पिछली जिन्दगी में लौट गया .  
  
  
                



 

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