सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

no one killed gaaliyan

ए साला अभी अभी हुआ यकीन की गालियों को कोई मार नहीं सकता और न ही समाज में उन पर कोई पाबन्दी लगाई जा सकती है. ये हमारी जन्दगी में कुछ इस कदर रच बस चुकी हैं के इनके बिना ज़िन्दगी wife बिना लाइफ लगेगी, हमारे रिश्ते इन्ही पर टिके हुए है. भला कोई पत्निशुदा आदमी अपने साले साहब और साली साहिबा के बगैर ससुराल की कल्पना तो कर के देखे गालियों के बिना शादियों की रस्मे अधूरी हैं द्वार चार पर जब तक औरतें वर पक्ष की सात पुश्तों को न न्योत दे कार्यक्रम आगे नहीं बढ़ता शादियाँ औरतों को गरियाने का सामाजिक मंच देती हैं. राम चरित मानस से ले कर ये साली जिंदगी गलियों का विकास वैसे ही बताती हैं जैसे निरमा वाशिंग पावडर से शुरू हुआ सफ़र सर्फ़ एक्सेल क़ुइक्क वाश तक आ पंहुचा है, जो किसी भी पुरानी गाली को नई से धो डालने को तयार है. situation और औकात के हिसाब से गालियों का बड़ा शब्दकोष बन चूका है.एक दौर में तुलसी दास गालियों को कुछ इस तरह व्यक्त करते हैं " दुलहिन गावही मंगल चार " वहा से शुरू हुआ मंगल चार आज हमारे आचार विचार में पहुच चूका है, bolywodiya गाली ने इनका समानीकरण कर दिया है. जिन गालियों को कल तक मुह से कहने तक में शर्म आती थी, गानों ने उन्हें गुनगुनाने लायक बना दिया है .1974 में आई फिल्म sagina का गाना साला मै तो साहब बन गया से इसकी शुरुआत हुई 1994 में मै खिलाडी  तू अनाड़ी के " साला उफ़ माँ एला अगो गोरी आली आली " ने एक नई शब्दावली हिंदी को दी फिर राग दे बसंती 2006 के गाने "ए साला अभी अभी " ने युवाओं की नहीं जुबान को प्रसिद्धि की उचायीं तक पहुचाया. ज़िन्दगी और सिस्टम को नए ढंग से आमिर का ये नया अंदाज़ सभी को खूब पसंद आया , बोलीवूद और गालियों का रिश्ता कुछ कुछ जीजा साले जैसा है अगर इनमे से कोई एक भी एक दुसरे को नज़रंदाज़ किया तो goalmaal returns की तरह   ये" साले काम से गए". कहने का मकसद सिर्फ इतना है की तब न कोई गालियों को पूछेगा और न ही फिल्मे चलेंगी . फिल्मों में गालियाँ वैसी ही हैं जैसे भारतीय पकवानों में चाट मसाला. तभी तो जाने तू जाने ना के director को कहना पड़ा "papu cant danse sala " . कहा जाता है की गालियों का भी अपना समाज साश्त्र है सिर्फ गालियों को बकने और सुनने के सिवाय अगर समझने की कोशिश की जाये तो पाते हैं कि सभी गालियाँ स्त्री सूचक है और इनको बकना मर्दानगी मानी जाती है. हमारे समाज में आधी आबादी के  सम्मान और स्थिति को समझने का सबसे बेहतर जरिया ये गालियाँ है. अगर फिल्मे "no one killed jessika "क़ी तरह लड़कियों को भी जिसकी  जूती उसी के सर मारने का मौका दे रही है तो समझ में नहीं आता क़ी आखिर प्रॉब्लम कहा है साला. जानती हु प्रॉब्लम तो होगी ही क्योकि हमारे दबंग समाज क़ी " आदत ससुरी बड़ी कमीनी है" . डबल गेम  सदियों से खेलता आया है. वास्तव में सोच और परम्परों के मामले में ये लंगड़ा है. ये कितना भी सुधरने का दावा कर ले लेकिन इसके स्वाभाव क़ी राजनीती हम सब जानते है, लड़किओं के मामले में ये हमेशा से ही फेकता आया है .. साला ! 

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